गुरुवार, 28 जनवरी 2010

मछली की तरह

एक मछली की तरह,
सारी जिन्दगी वो उसके प्रेम-जल से,
प्यास बुझाने की कोशिश करती रही,
पर उसकी प्यास नहीं बुझी,
कैसे बुझती,
वह प्रेम-जल,
कभी मछली के खून तक पहुँचा ही नहीं,
वो तो मौका मिलते ही,
पानी की तरह उसके गलफड़ों से निकलकर,
भागता रहा,
दूसरी मछलियों की तरफ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जो मन में आ रहा है कह डालिए।