रविवार, 20 मार्च 2011

होली की शुभकमनाओं के साथ प्रस्तुत है ये मस्ती भरी ग़ज़ल

आज पलकों पे आग पलने दो
ना बुझाओ चराग जलने दो

आग बुझती न सूर्य के दिल की
आयु दिन एक से हैं ढलने दो

नींद की बर्फ लहू में पैठी
रात की धूप में पिघलने दो

शर्म की छाँव, इश्क का पौधा
सूख जाएगा इसे फलने दो

थक गई है ये अकेले चलकर
आज साँसों पे साँस मलने दो

नीर सा मैं हूँ शर्करा सी तुम
थोड़ी जो है खटास चलने दो

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (21-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. नीर सा मैं हूँ शर्करा सी तुम
    थोड़ी जो है खटास चलने दो ..

    Bahut khoob ... paani aur shakkar .... kya baat hai Dharmendr ji ..

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  3. नीर और शक्कर हैं तो खटास कहाँ टिकेगी ...
    सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  4. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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