गुरुवार, 3 नवंबर 2011

ग़ज़ल : टूट जाए तो आसमाँ चमके

दिल है तारा रहे जहाँ चमके
टूट जाए तो आसमाँ चमके

है मुहब्बत भी जुगनुओं जैसी
जैसे जैसे हो ये जवाँ, चमके

क्या वो आया मेरे मुहल्ले में
आजकल क्यूँ मेरा मकाँ चमके

जब भी उसका ये जिक्र करते हैं
होंठ चमकें मेरी जुबाँ चमके

वो शरारे थे या के लब मौला
छू गए तन जहाँ जहाँ, चमके

ख्वाब ने दूर से उसे देखा
रात भर मेरे जिस्मोजाँ चमके

ज्यों ही चर्चा शुरू हुई उसकी
जो कहानी थी बेनिशाँ, चमके

एक बिजली थी, मुझको झुलसाकर
कौन जाने वो अब कहाँ चमके

14 टिप्‍पणियां:

  1. एक बिजली थी, मुझे झुलसाकर
    कौन जाने वो अब कहाँ चमके
    वाह वाह हर शेर खुबसूरत दाद को मुहताज नहीं , बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत उम्दा धर्मेन्द्र भईया....
    हर शेर काबिले दाद....
    सादर बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  3. है मुहब्बत भी जुगनुओं जैसे ...
    वाह क्या गज़ब का शेर है धर्मेन्द्र जी ... मज़ा आ गया गज़ल में ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति सभी कुछ चमक रहा है :)

    जवाब देंहटाएं
  5. एक बिजली थी, मुझे झुलसाकर
    कौन जाने वो अब कहाँ चमके

    वाह! क्या बात है! बेजोड़ ग़ज़ल और आपके नए रदीफ़ कर प्रयोग अच्छा लगा!

    जवाब देंहटाएं
  6. "क्या वो आया मेरे मुहल्ले में
    आजकल क्यूँ मेरा मकाँ चमके"

    बहुत खूबसूरत अंदाज़ेबयां!

    जवाब देंहटाएं
  7. ई-मेल पर प्राप्त टिप्पणी
    श्री नवीन सी चतुर्वेदी जी ने कहा.....
    सबसे पहले इस सुंदर ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें धरम प्रा जी
    दिल खुश कर दिया, कमाल के अशआर निकाले हैं आपने

    सिर्फ ये दो शेर मैं समझ नहीं पा रहा हूँ,

    [1]

    ज्यों ही चर्चा शुरू हुई उसकी
    बेनिशाँ थी जो दासताँ, चमके

    मुझे यहाँ लिंग दोष जैसा कुछ लगा, यदि मेरे समझने में कुछ ग़लती हो तो मुझे समझाने की कृपा करें
    मैं कुछ यूं समझ रहा हूँ

    ज्यूँ ही चर्चा शुरू हुई उस की
    वाक़ये थे जो बेनिशाँ, चमके

    [2]

    एक बिजली थी, मुझे झुलसाकर
    कौन जाने वो अब कहाँ चमके

    यहाँ ऊला में तक़्तीह को ले कर थोड़ी शंका है, मुझे यूँ सही लगा है :-

    एक बिजली / थी, मुझको झुल / साकर
    फाएलातुन / मुफ़ाएलुन / फालुन
    21 22 / 1212 / 22

    'थी' और 'को' में हर्फ़ गिराना है

    आशा करता हूँ आप नाराज़ नहीं होंगे।

    जवाब देंहटाएं
  8. नवीन भाई,
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
    आप वाकई सही कह रहे हैं।

    पहले वाला शे’र इस तरह कर देते हैं
    ज्यों ही चर्चा शुरू हुई उसकी
    जो कहानी थी बेनिशाँ, चमके

    दूसरे के बारे में आप बिल्कुल सही हैं मिसरा बहर से बाहर था।
    बहुत बहुत धन्यवाद
    स्नेह बनाए रखें।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

जो मन में आ रहा है कह डालिए।