रविवार, 25 दिसंबर 2011

ग़ज़ल : पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध

पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध
दरिया को बाँहों में लेकर बतियाता है बाँध

मत बाँधो उसके गम में तुम बाँध आँसुओं का
बिना सहारे के बनता जो, ढह जाता है बाँध

फाड़ डालती पर्वत की छाती चंचल नदिया
बँध जाती जब दिल माटी का दिखलाता है बाँध

पत्थर सा तन, मिट्टी सा दिल, मन हो पानी सा
तब जनता के हित में कोई बन पाता है बाँध

पर्त पर्त बनते देखा है इसको इसीलिए
सपनों में अक्सर मुझसे मिलने आता है बाँध

यूँ ही ग़ज़ल नहीं बनते कंकड़, पत्थर, मिट्टी,
तेरा मेरा जन्मों का कोई नाता है बाँध

13 टिप्‍पणियां:

  1. पत्थर सा तन, मिट्टी सा दिल, मन हो पानी सा
    तब जनता के हित में कोई बन पाता है बाँध

    बहुत खूब ..खूबसूरत गज़ल ..

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  2. धरम प्रा जी तुस्सी ग्रेट हो यार, आप की कल्पना शक्ति अद्भुत है

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  3. बिल्कुल नई सोच नयी रदीफ !! वाह !!! वाह !!

    पानी पर पत्थर तैरेंगे तुममे है वह बात
    धर्म!!कहे तो पानी पर भी बँध जाता है बाँध -मयंक

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  4. बिल्कुल नई सोच नयी रदीफ !! वाह !!! वाह !!

    पानी पर पत्थर तैरेंगे तुममे है वह बात
    धर्म!!कहे तो पानी पर भी बँध जाता है बाँध -मयंक

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  5. पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध
    दरिया को बाँहों में लेकर बतियाता है बाँध

    बिल्कुल नए रदीफ को लेकर लिखी इस ग़ज़ल में अहसासों की भी ताजगी है।

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  6. पत्थर सा तन, मिट्टी सा दिल, मन हो पानी सा
    तब जनता के हित में कोई बन पाता है बाँध
    वाह!

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