मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

ग़ज़ल : न दोष कुछ तेरी कटार का है

बह्र : 1212 1212 112

न दोष कुछ तेरी कटार का है
मुझे ही शौक आर पार का है

बिना गुनाह रब के पास गया
कुसूर ये ही मेरे यार का है

मुझे जहान या ख़ुदा का नहीं
लिहाज है तो तेरे प्यार का है

क्यूँ रब की चीज पे गुरूर करे
तेरा हसीं बदन उधार का है

लो नौकरों ने देश लूट लिया
कुसूर मालिकों के प्यार का है

3 टिप्‍पणियां:

  1. न दोष कुछ तेरी कटार का है
    हमें ही शौक आर पार का है

    बहुत खूब! बेहतरीन गज़ल...

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  2. मुझे रकीब या ख़ुदा का नहीं
    अगर है डर तो तेरे प्यार का है...

    बहुत खूब ... प्यार का डर ही सबसे बड़ा डर है ... बहुत ही मस्त गज़ल है ... लाजवाब ...

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