रविवार, 19 जुलाई 2015

ग़ज़ल : ख़ुदा बोलता है बशर में उतर कर

बह्र : १२२ १२२ १२२ १२२

ख़ुदाई जब आए हुनर में उतर कर
ख़ुदा बोलता है बशर में उतर कर

भरोसा न हो मेरी हिम्मत पे जानम
तो ख़ुद देख दिल से जिगर में उतर कर

इसी से बना है ये ब्रह्मांड सारा
कभी देख लेना सिफ़र में उतर कर

महीनों से मदहोश है सारी जनता
नशा आ रहा है ख़बर में उतर कर

तेरी स्वच्छता की ये कीमत चुकाता
कभी देख तो ले गटर में उतर कर

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