शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2016

नवगीत : मन का ज्योति पर्व

अंधकार भारी पड़ता जब
दीप अकेला चलता है
विश्व प्रकाशित हो जाता जब
लाखों के सँग जलता है

हैं प्रकाश कण छुपे हुये
हर मानव मन के ईंधन में
चिंगारी मिल जाये तो
भर दें उजियारा जीवन में

इसीलिए तो ज्योति पर्व से
हर अँधियारा जलता है

ज्योति बुझाने की कोशिश जब
कीट पतंगे करते हैं
जितना जोर लगाते
उतनी तेज़ी से जल मरते हैं

अंधकार के प्रेमी को
मिलती केवल असफलता है

मन का ज्योति पर्व मिलजुल कर
हम निशि दिवस मनायेंगे
कई प्रकाश वर्ष तक जग से
तम को दूर भगायेंगे

सब देखेंगे दूर खड़ा हो
हाथ अँधेरा मलता है

7 टिप्‍पणियां:

  1. ज्योति पर्व शायद इसलिए ही अमावस मिएँ होता है.. की दीप दीप से पूर्ण अन्धकार गायब हो जाये ...
    आपको हादिक बधाई दीपावली की ...

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जो मन में आ रहा है कह डालिए।