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गुरुवार, 12 जनवरी 2012

एक मुक्तक

न कर विश्वास तारों का तुझे अक्सर दगा देंगे
लगें ये दूर से अच्छे जो पास आए जला देंगे।
अँधेरी रात को ही जगमगाना इनकी फितरत है
ये सच की रौशनी में झट से मुँह अपना छिपा लेंगे।

बुधवार, 17 नवंबर 2010

बस इतना अधिकार मुझे दो

नहीं चाहता साथ तुम्हारे
नाचूँ, गाऊँ, झूमूँ, घूमूँ
नहीं चाहता तुमको देखूँ,
छूँलूँ, कसलूँ या फिर चूमूँ

नहीं चाहता तुम अपना जीवन
दो या फिर प्यार मुझे दो
अंत समय चंदन बन जाऊँ
बस इतना अधिकार मुझे दो

बुधवार, 29 सितंबर 2010

न है वो चेहरा, न ही जुल्फें, न पलकें, न अदा

न है वो चेहरा, न ही जुल्फें, न पलकें, न अदा,
आजकल एक जैसे रातोदिन, बातोसदा।

कसाई भी हुआ है आज बेईमान बड़ा,
बिका है कोई, बँधा कोई, सर से कोई जुदा।

लगी थी भीड़ वहाँ अंधे, बहरे, गूँगों की,
न जाने कौन गिरा, कौन बचा, कौन लदा।

देर है मौके की, माहौल और कीमत की,
‘बिकाऊ है’ ये हर इक ईंशाँ के ईमाँ पे गुदा।

नहीं कुचल के गरीबों को कौन आगे बढ़ा,
वो तुम हो, या के मैं हूँ, या के वो है, या के ख़ुदा।

बुधवार, 30 जून 2010

तू छोड़ गई मुझको बताते रहे खुद को

तू छोड़ गई मुझको बताते रहे खुद को,
कुछ इस तरह से उल्लू बनाते रहे खुद को।

मिट जाएगा नशा ये तेरा रगों से मेरी,
यह सोच के ताउम्र पिलाते रहे खुद को।

हट जाएगी खुशबू ये तेरी साँस से मेरी,
यह सोच के कीचड़ में गिराते रहे खुद को।

मिट जाएगी तस्वीर तेरी दिलोजान से,
यह सोच के ताउम्र मिटाते रहे खुद को।

हो जायेंगी अलग कभी तो रूहें हमारी,
यह सोच दोजखों में जलाते रहे खुद को।

जेहन से निकल जाएँगी रिसकर तेरी यादें,
यह सोच के हर नज्म में लाते रहे तुझको।

गुरुवार, 18 मार्च 2010

न कर तू कोशिशें तारों को छूने की मेरे हमदम

न कर तू कोशिशें तारों को छूने की मेरे हमदम,
सितारे दूर से अच्छे हैं छूने पर जला देंगे।

निकलना है, निकल जा तू, बगल से सारे तारों के,
जो इनके पास बैठा आग का गोला बना देंगे।

अँधेरे में चमकना इनकी फितरत और आदत है,
ये दिन की रौशनी में जाके मुँह अपना छिपा लेंगे।

ये इनकी टिमटिमाहट काम ना आयेगी कुछ तेरे,
जो इनसे रौशनी माँगो पता रवि का बता देंगे।

ये जब बूढ़े हैं हो जाते तड़पकर घुटके मरते हैं,
ये छू दें मरके भी तुझको तो मुर्दों सा बना देंगे।

मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

स्मृति

पल में टूटेंगे,
ये जानते लोग सभी हैं;
रेत के घरौंदे,
बनाते वो फिर भी हैं।

माना प्रकृति मिटा सकती है,
नर की निर्मिति;
पर मिटा नहीं सकती,
उस नन्हें घर की स्मृति।