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मंगलवार, 28 मई 2013

सात हाइकु

(१)

जिन्हें है जल्दी
अग्रिम श्रद्धांजलि
जाएँगें जल्दी

()

कैसे कहूँ मैं?
कैंसर पाँव छुए
जीता रह तू

(३)

सैकड़ों बच्चे
चुक गई ममता
नर्स हैरान

(४)

तुम हो साथ
जीवन है कविता
बच्चे ग़ज़ल

(५)

सूर्य के बोल
धरती की आवाज़
वर्षा की धुन

()

अँधेरा घना
तेरे साथ स्वर्ग है
नर्क वरना

(७)

प्रेम की बातें
झूठे हैं ग्रंथ सभी
सच्ची हैं आँखें

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

दस हाइकु

मंत्र-मानव
प्रगति कर बना
यंत्र-मानव

नया जमाना
कैसे जिए ईश्वर
वही पुराना

ढूँढे ना मिली
खो गई है कविता
शब्दों की गली

बात अजीब
सेवक हैं अमीर
लोग गरीब

फलों का भोग
भूखों मरे ईश्वर
खाएँ बंदर

क्या उत्तर दें
राम कृष्ण से बन
सीता राधा को

पहाड़ उठे
खाई की गर्दन पे
पाँव रखके

माँ का आँचल
है कष्टों की घूप में
नन्हा बादल

आँखें हैं झील
पलकें जमीं बर्फ
मछली सा मैं

हवा में आके
समझा मछली ने
पानी का मोल

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

पाँच सरकारी हाइकु

पूछते नहीं,

राज्य की फाइलों से;

उम्र उनकी।

 

मक्खी गयी थी,

दफ्तर सरकारी;

मरी बेचारी।

 

खून चूस के,

जोंकें ये सरकारी;

माँस भी खातीं।

 

वादों का हार,

पहना के नेताजी;

हैं तड़ीपार।

 

घोंघे की गति,

सरकारी कामों से,

ज्यादा है तेज।

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

साहब बोले (हाइकु कविता)

साहब बोले,
"नींबू मीठा होता है"
मैं बोला, "हाँ जी"।

साहब बोले,
"चीनी फीकी होती है"
मैं बोला, "हाँ जी"।

साहब बोले,
"मिर्ची खट्टी होती है"
मैं बोला, "हाँ जी"।

साहब बोले,
"मैं बनूँगा एम डी?"
मैं बोला, "हाँ जी"।

मैं बोला, "सर
दस दिन की छुट्टी
है मुझे लेनी"।

"जा अब छुट्टी,
बड़ा काम है किया"
साहब बोले।

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

सात हाइकु

आँसू तुम्हारे,

मेरे लिये बहे क्यों,

पराया हूँ मैं।

 

नशा हो गया,     

जो मैंने पिया प्याला,

आँखो से तेरी।

 

छू दे प्यार से,

वो पत्थर को इंसा,

करे पल में।

 

मधुशाला हो,

न हों आँखें तेरी, तो

चढ़ती नहीं।

 

मधु है, या है

ये, अमृत का प्याला,

या लब तेरे।

 

बिजली गिरी,

न थी छत भी जहाँ,

उसी के यहाँ।

 

उँचा पहाड़,

बगल में है देखो,

गहरी खाई।