गुरुवार, 12 जनवरी 2012

एक मुक्तक

न कर विश्वास तारों का तुझे अक्सर दगा देंगे
लगें ये दूर से अच्छे जो पास आए जला देंगे।
अँधेरी रात को ही जगमगाना इनकी फितरत है
ये सच की रौशनी में झट से मुँह अपना छिपा लेंगे।

शनिवार, 7 जनवरी 2012

अमीरी और गरीबी की समीकरणें

इंसान खोज चुका है वे समीकरणें
जो लागू होती हैं अमीरों पर
जिनमें बँध कर चलता है सूर्य
जिनका पालन करती है आकाशगंगा
और जिनके अनुसार इतनी तेजी से
विस्तारित होता जा रहा है ब्रह्मांड
कि एक दिन सारी आकाशगंगाएँ
चली जाएँगी हमारे घटना क्षितिज से बाहर
हमारी पहुँच के परे
ये समीकरणें रचती हैं एक ऐसा संसार
जहाँ अनिश्चितताएँ नगण्य हैं

खोजे जा चुके हैं वे नियम भी
जिनमें बँध कर जीता है गरीब
जिनसे पता चल जाता है परमाणुओं का संवेग
इलेक्ट्रानों की स्थिति, वितरण और विवरण
रेडियो सक्रियता का कारण
ये समीकरणें रचती हैं एक ऐसा संसार
जहाँ चारों ओर बिखरी पड़ीं हैं अनिश्चितताएँ

पर जैसे ही हम मिलाते हैं
गरीबों और अमीरों की समीकरणों को एक साथ
फट जाता है सूर्य
घूमना बंद कर देती है आकाशगंगा
टूटने लग जाते हैं दिक्काल के धागे
हर तरफ फैल जाती है अव्यवस्था
किसी गुप्त स्थान से आने लगती हैं आवाजें
“ऐसा कोई नियम नहीं बन सकता
जो अमीरों और गरीबों पर एक साथ लागू हो सके
हमारे नियम अलग हैं और अलग ही रहेंगे”

कसमसाने लगते हैं
ब्रह्मांड के 95 प्रतिशत भाग को घेरने वाले
काली ऊर्जा और काला द्रव्य

मगर इन आवाजों के बावजूद
सीईआरएन में धमाधम भिड़ते हैं शीशे के परमाणु
खोजा लिया जाता है
प्रकाश की गति से ज्यादा तेज चलने वाला न्युट्रिनो
पकड़ा जाने ही वाला है हिग्स बोसॉन
लोगों का गुस्सा उतरने लगा है सड़कों पर
संसद का एक सदन पार चुका है लोकपाल

धीरे धीरे खोजे जा रहे हैं
दो परस्पर विरोधी समीकरणों को जोड़ने वाले
छुपकर बैठे धागे

दूर कहीं मुस्कुराता हुआ ईश्वर
निश्चित कर रहा है समय
ब्रह्मांड के 95 प्रतिशत काले हिस्से के सफेद होने का

बुधवार, 4 जनवरी 2012

क्षणिका : चर्बी

वो चर्बी
जिसकी तुम्हें न अभी जरूरत है
न भविष्य में होगी
वो किसी गरीब के शरीर का मांस है

रविवार, 1 जनवरी 2012

नए साल में एक नई कविता

आज एक चक्कर और पूरा हुआ
ऐसा कहकर धरती ने दूर तक फैली आकाशगंगा को देखा
उसके मुँह से आह निकल पड़ी
सूरज से दूर
कितनी खूबसूरत दिखती है आकाशगंगा
काश! मैं मुक्त हो पाती सूरज के चिर बंधन से
केवल एक साल के लिए

पड़ोसी मंगल भी बोल पड़ा
हाँ भाभी, चलिए चलते हैं
मैं भी ऊब गया हूँ इस नीरस जिंदगी से

एक बारगी धरती के बदन में खुशी की लहर दौड़ गई
कि मंगल भी उसकी तरह सोचता है

पर अगले ही पल उसे याद आया
अरे! मैं तो खरबों खरब बच्चों की माँ हूँ
मैं सूरज से दूर गई
तो कहाँ से आएगी इनको जीवित रखने के लिए ऊर्जा

न न मंगल भैया!
मेरे बच्चों से बढ़कर मेरे लिए और कुछ नहीं है
इतना कहकर
धरती चल पड़ी
सूरज का चक्कर लगाने
और उसके बच्चे इस सब से बेखबर
चल पड़े नया साल मनाने

रविवार, 25 दिसंबर 2011

ग़ज़ल : पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध

पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध
दरिया को बाँहों में लेकर बतियाता है बाँध

मत बाँधो उसके गम में तुम बाँध आँसुओं का
बिना सहारे के बनता जो, ढह जाता है बाँध

फाड़ डालती पर्वत की छाती चंचल नदिया
बँध जाती जब दिल माटी का दिखलाता है बाँध

पत्थर सा तन, मिट्टी सा दिल, मन हो पानी सा
तब जनता के हित में कोई बन पाता है बाँध

पर्त पर्त बनते देखा है इसको इसीलिए
सपनों में अक्सर मुझसे मिलने आता है बाँध

यूँ ही ग़ज़ल नहीं बनते कंकड़, पत्थर, मिट्टी,
तेरा मेरा जन्मों का कोई नाता है बाँध

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

क्षणिका : आँच

हमारे तुम्हारे बीच
भले ही अब कुछ भी नहीं बचा
मगर तुम्हारे दिल में जल रही लौ से
मैं आजीवन ऊर्जा प्राप्त करता रहूँगा
क्योंकि आँच अर्थात अवरक्त विकिरण को चलने के लिए
किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती

रविवार, 4 दिसंबर 2011

गली के कुत्ते और वफ़ादार कुत्ते

किसे नहीं अच्छे लगते
वफादार कुत्ते?

जो तलवे चाटते रहें
और हर अनजान आदमी से
कोठी और कोठी मालिक की रक्षा करते रहें

ऐसे कुत्ते जो मालिक का हर कुकर्म देख तो सकें
मगर किसी को कुछ बता न सकें
जो मालिक की ही आज्ञा से
उठें, बैठें, सोएँ, जागें, खाएँ, पिएँ और भौंकें

ऐसे ही कुत्तों को खाने के लिए मिलता है
बिस्किट और माँस
रहने के लिए मिलती हैं
बड़ी बड़ी कोठियाँ
और मिलती है
अच्छे से अच्छे नस्ल की कुतिया

और जब ऐसे किसी कुत्ते पर कोई संकट आता है
तो उसे बचाने के लिए एक हो जाते हैं
सारे वफादार कुत्ते और कोठी मालिक
और मजाल कि ऐसे कुत्तों पर कोई आँच आ जाए
ज्यादा से ज्यादा इनकी कोठियाँ बदल दी जाती हैं बस

कभी कभार कोई कुत्ता जोश में आता है
और जोर से भौंककर भीड़ इकट्ठा करने की कोशिश करता है
तो उसे पागल कहकर गोली मार दी जाती है

शहर को सुरक्षित रखने का जिम्मा
दर’असल गली के कुत्तों के पास है
ये दिन रात गलियों में गश्त लगाते
और भौंकते हुए घूमते रहते हैं
बदले में इन्हें मिलता है
कूड़े में गिरा बदबूदार खाना
और रहने के लिए मिलता है
गली का कोई अँधेरा, सीलनभरा, गंदा कोना

ये कविता नहीं है
श्रद्धांजलि है
उन गली के कुत्तों को
जो शहर की रक्षा करते करते
एक दिन किसी गाड़ी के नीचे आकर
कुत्ते की मौत मर जाते हैं

ऐसे कुत्तों की कोई नस्ल नहीं होती
इनकी कहीं कोई मूर्ति नहीं लगती
और ये अच्छे नस्ल की कुतिया
केवल अखबारों में छपी तस्वीरों में ही देख पाते हैं
मरने के बाद इनकी लाश घसीटकर
कहीं शहर से बाहर डाल दी जाती है
सड़कर खत्म हो जाने के लिए

ओ गली के आवारा कुत्तों!
तुम्हारी वफादारी है अपने शहर के लिए
इसलिए भले ही तुम्हारा जीवन
और तुम्हारी मौत गुमनाम हों
मगर ये गलियाँ, ये शहर
हमेशा तुम्हें याद रखेंगे
तुम हमेशा रहोगे कलाकारों के लिए प्रेरणा के स्रोत
और तुम्हारा जिक्र हमेशा किया जाएगा
कविताओं में

ओ गली के आवारा कुत्तों!
स्वीकार करो
शब्दों के सुमन
भावों की धूप
कविता के स्वर और एक कवि की पूजा
क्योंकि इस शहर के
तुम ही देवता हो
तुम न होते
तो ये शहर कब का
वफादार कुत्तों और कोठी मालिकों का गुलाम हो गया होता

सोमवार, 28 नवंबर 2011

कविता : फल और डाल

जब से
फलों से लदी हुई डालियों ने
झुकने से मना कर दिया

फलों ने
झुकी हुई डालियों पर लदना शुरू कर दिया

अब कहावत बदल चुकी है
आजकल जो डाल
जितना ज्यादा झुकती है
वो उतना ही ज्यादा फलती है

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

कविता लिखना जैसे चाय बनाना

कविता लिखना
जैसे चाय बनाना

कभी चायपत्ती ज्यादा हो जाती है
कभी चीनी, कभी पानी, कभी दूध
कभी तुलसी की पत्तियाँ डालना भूल जाता हूँ
कभी इलायची, कभी अदरक

मगर अच्छी बात ये है
कि ज्यादातर लोग भूल चुके हैं
कि चाय में तुलसी की पत्तियाँ
अदरक और इलायची भी पड़ते हैं

कुछ को ज्यादा चायपत्ती अच्छी लगती है
तो कुछ को कम दूध
और मेरा काम चल जाता है
चाय बेकार नहीं जाती
कोई न कोई पी ही लेता है

मगर कभी तो मिलेगा
मुझे इन सब का सही अनुपात
कभी तो बनाऊँगा मैं ऐसी चाय
जो जुबान को छूते ही
थोड़ी देर के लिए ही सही
इंसान को उसकी सुध बुध भुला दे
और अगर सही अनुपात नहीं भी मिला
तो भी मुझे यह संतोष तो होगा
कि मैंने अपनी ओर से कोई कमी नहीं रखी
शायद मेरी किस्मत में ही नहीं था
ऐसे स्वाद वाली चाय बनाना

पर मैं चाय बनाना नहीं छोडूँगा
क्योंकि चाय चाहे जैसी भी बने
इंसान को तरोताजा होने के लिए
चाय की जरूरत हमेशा रहेगी
और हमेशा रहेगी तलाश
एक सुध बुध भुला देने वाले स्वाद की
एक अविस्मरणीय कविता की

सोमवार, 21 नवंबर 2011

कविता : सजा

दुनिया की ऐसी कौन सी जगह है
जहाँ ईश्वर और धर्म के नाम पर
कत्ल नहीं किए गए?

दुनिया का ऐसा कौन सा धर्म है
जो समय बीतने के साथ साथ
सड़ नहीं रहा है?

दर’असल ये सजा है
जो दे रहा है ईश्वर इंसानों को
कुछ मानवों को ईश्वर बना देने की
और कुछ मानवों द्वारा कही एवं लिखी गई बातों को
धर्म बना देने की