बुधवार, 20 जून 2012

कविता : धूप


सूरज नहीं थकता
धूप थक जाती है

सूरज नहीं सोता
धूप सो जाती है

सूरज के लिए अर्थहीन है
थक कर सोना

धूप जानती है
थक कर सोने का आनंद
सुबह फिर से नई हो जाने का आनंद

सूरज के मिटने के बाद
उसका बचा अंश अँधेरे का गुलाम हो जाएगा

धूप रोज जिएगी रोज मरेगी
पर अनंतकाल तक अँधेरे से लड़ती रहेगी

शुक्रवार, 15 जून 2012

ग़ज़ल : कब्र मेरी वो अपनी बताने लगे


जिनको आने में इतने जमाने लगे
कब्र मेरी वो अपनी बताने लगे

जाने कब से मैं सोया नहीं चैन से
इस कदर ख्वाब तुम बिन सताने लगे

झूठ पर झूठ बोला वो जब ला के हम
आइना आइने को दिखाने लगे

है बड़ा पाप पत्थर न मारो कभी
जिनका घर काँच का था, बताने लगे

बिन परिश्रम ही जिनको खुदा मिल गया
दौड़कर लो वो मयखाने जाने लगे

प्रेम ही जोड़ सकता इन्हें ताउमर
टूट रिश्ते लहू के सिखाने लगे

भाग्य ने एक लम्हा दिया प्यार का
जिसको जीने में हमको जमाने लगे

रविवार, 10 जून 2012

ग़ज़ल : डाकू भी जब चुनाव के दंगल में आ गए


डाकू भी जब चुनाव के दंगल में आ गए
बंदूक ले मजदूर ही चंबल में आ गए

हर भूल चूक तेरी जलेगी या गड़ेगी
उल्लू गधे भी सुन के ये मेडिकल आ गए

हो भीड़ तो चुपचाप सहें फूल हर सितम
भँवरों ने ये सुना तो वो लोकल में आ गए

तुलसी लगा के घर में सभी गाँव के सपूत
खाने कबाब शहर के होटल में आ गए

अनपढ़ गँवार थे तो खड़े थे जमीन पर
पढ़ लिख के हम भी ज्ञान के दलदल में आ गए

गुरुवार, 7 जून 2012

कविता : प्रेमियों का शब्दकोश


साँस का अर्थ जुबान है
आँख का अर्थ होंठ है
चेहरे का अर्थ किताब है
होंठों का अर्थ त्वचा है
त्वचा का अर्थ आत्मा है
मैं, तुम निरर्थक शब्द हैं
हम का अर्थ दुनिया है
प्रेम का अर्थ ईश्वर है

कल ही मैंने कबाड़ी से प्रेमियों का शब्दकोश खरीदा है

रविवार, 3 जून 2012

ग़ज़ल : जितना ज्यादा हम लिखते हैं


जितना ज्यादा हम लिखते हैं
सच उतना ही कम लिखते हैं

दुनिया के घायल माथे पर
माँ के लब मरहम लिखते हैं

अब तो सारे बैद मुझे भी
रोज दवा में रम लिखते हैं

जेहन से रिसकर निकलोगी
सोच, तुम्हें हरदम लिखते हैं

जफ़ा मिली दुनिया से इतनी
इसको भी जानम लिखते हैं