बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

ग़ज़ल : अच्छे बच्चे सब खाते हैं

अच्छे बच्चे सब खाते हैं
कहकर जूठन पकड़ाते हैं

कर्मों से दिल छलनी कर वो
बातों से फिर बहलाते हैं

खत्म बुराई कैसे होगी
अच्छे जल्दी मर जाते हैं

जीवन मेले में सच रोता
चल उसको गोदी लाते हैं

कैसे समझाऊँ आँखों को
आँसू इतना क्यूँ आते हैं

कह तो देते हैं कुछ पागल
पर कितने सच सह पाते हैं

10 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति पर --

    बधाई महोदय ||

    http://neemnimbouri.blogspot.com/2011/10/blog-post.html

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  2. कैसे समझाऊँ आँखों को
    आँसू इतने क्यूँ आते हैं

    जीवन मेले में सच रोता
    चल उसको गोदी लाते हैं

    वाह! धर्मेन्द्र भाई, बहुत सुन्दर गज़ल कही आपने...
    सादर बधाई...

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  3. जीवन मेले में सच रोता
    चल उसको गोदी लाते हैं
    क्या सोंच है गजब वाह वाह .

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  4. "जीवन मेले में सच रोता
    चल उसको गोदी लाते हैं"

    अत्यंत नवीन और सुंदर सोच !

    "कैसे समझाऊँ आँखों को
    आँसू इतना क्यूँ आते हैं"

    बहुत ही भावपूर्ण ! सुंदर गज़ल कह्ने के लिए बधाई ।

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  5. विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
    नवीन सी. चतुर्वेदी

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  6. जीवन मेले में सच रोता
    चल उसको गोदी लाते हैं

    ...लाज़वाब गज़ल...विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  7. 'कह तो देते है कुछ पागल
    पर कितने सच कह पाते हैं '
    .............सुन्दर ..अर्थपूर्ण

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  8. 'कह तो देते है कुछ पागल
    पर कितने सच कह पाते हैं '

    लाजवाब ग़ज़ल! बहुत खूब!

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  9. कह तो देते हैं कुछ पागल
    पर कितने सच सह पाते हैं
    वाह!

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