tag:blogger.com,1999:blog-54660543644654686332024-03-10T13:54:22.303+05:30ग्रेविटॉनयकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण।
तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को /
कम कर देता है समय की गति /
इसे कैद करके नहीं रख पातीं /
स्थान और समय की विमाएँ।
ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में /
ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक /
जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती।
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comBlogger517125tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-25843176212572585742024-01-07T23:48:00.005+05:302024-01-07T23:50:41.901+05:30ग़ज़ल: चोर का मित्र जब से बना बादशाहबह्र: 212 212 212 212 <br /><br />चोर का मित्र जब से बना बादशाह<br />चोर को चोर कहना हुआ है गुनाह<br /><br />वो जो संख्या में कम थे वो मारे गए<br />कुछ गुनहगार थे शेष थे बेगुनाह<br /><br />आज मुंशिफ के कातिल ने हँसकर कहा<br />अब मेरा क्या करेंगे सुबूत-ओ-गवाह<br /><br />खून में उसके सदियों से व्यापार है <br />बेच देगा वतन वो हटी गर निगाह<br /><br />एक बंदर से उम्मीद है और क्या <br />मारता है गुलाटी करो वाह वाह<br /><br />एक मौका सुनो फिर से दे दो उसे<br />जो बचा है उसे भी करे वो तबाह<br />‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-48114692395109503932023-09-16T00:02:00.000+05:302023-09-16T00:02:16.654+05:30ग़ज़ल: होता है इंक़िलाब सदा इंतिहा के बादज़ालिम बढ़ा दे ज़ुल्म ज़रा हर ख़ता के बाद <br />होता है इंक़िलाब सदा इंतिहा के बाद <br /><br />किसने बदल दिया है ये कानून देश का <br />होने लगी है जाँच यहाँ अब सज़ा के बाद<br /><br />बीमारियों से देश बचा लोगे जान लो<br />करती असर है ख़ूब दुआ पर दवा के बाद<br /><br />जिसने भी तप किया उसे देवत्व मिल गया<br />इंसान कौन-कौन बना देवता के बाद?<br /><br />ऐसा विकास भी न हमें आप दीजिए<br />मिलता सभी को जैसे ख़ुदा पर कज़ा के बाद‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-22431456763859760982023-08-03T10:19:00.003+05:302023-08-03T10:20:35.421+05:30नवगीत: धुँआँ उठा है नफ़रत कापास आ गया है बेहद<br />जब से चुनाव फिर संसद का<br />राजनीति की चिमनी जागी<br />धुँआँ उठा है नफ़रत का<br /><br />आहिस्ता-आहिस्ता <br />सारी हवा हो रही है जहरीली<br />काले-काले धब्बों ने <br />ढँक ली है नभ की चादर नीली<br /><br />वोटर बेचारा <br />मोहरा भर है<br />पूँजी की हसरत का<br /><br />धर्म-जाति का शीतल जल अब<br />धीरे-धीरे फिर गरमाया<br />बढ़ती रही अगन तो <br />जल जायेगी मजलूमों की काया <br /><br />जनता को <br />अनुमान नहीं है<br />आने वाली आफ़त का<br /><br />भगवा हो या हरे रंग का<br />विष तो आख़िर विष होता है<br />नागनाथ या साँपनाथ का<br />मानव ही आमिष होता है<br /><br />देश अखाड़ा <br />घर-घर कुश्ती<br />देख तमाशा ताक़त का<br />‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-59056128104043222342023-04-27T12:05:00.001+05:302023-04-27T12:05:33.802+05:30नवगीत: नफ़रत का पौधामहावृक्ष बनकर लहराता<br />नफ़रत का पौधा<br /><br />पत्ते हरे फूल केसरिया<br />लाल-लाल फल आते<br />प्यास लहू की लगती जिनको<br />आकर यहाँ बुझाते<br /><br />सबसे ज्यादा फल खाने की<br />चले प्रतिस्पर्द्धा<br /><br />किसमें हिम्मत इसे काट दे<br />उठा प्रेम की आरी<br />इसकी रक्षा में तत्पर है <br />वानर सेना सारी <br /><br />कैसे-कैसे काम कराये <br />निरी अंधश्रद्धा <br /><br />पंखों वाले बीज हुये हैं<br />उड़-उड़ कर जायेंगे<br />भारत के कोने-कोने में<br />नफ़रत फैलायेंगे<br /><br />लोग लड़ेंगे<br />लोग मरेंगे <br />रोयेगी वसुधा<br /><br />रोपा इसको राजनीति ने<br />लेकिन खाद और पानी<br />वो देते जिनके घर बैठी<br />रक्तकमल पर लक्ष्मी<br /><br />जनता मूरख समझ न पाये <br />यह गोरखधंधा‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-59100842950459783852023-03-26T22:59:00.004+05:302023-03-26T22:59:35.428+05:30ग़ज़ल: कौन बताए बेचारी को पगली तू ख़तरे में है<div><br /></div><div>22 22 22 22 22 22 22 2</div><div><br /></div>जनता समझ रही बस पूँजी का जादू ख़तरे में है <br />कौन बताए बेचारी को पगली तू ख़तरे में है<br /><br />मालिक निकला चोर उचक्का दुनिया ने मुँह पर थूका<br />नौकर बोल रहा मेरा सोना बाबू ख़तरे में है<br /><br />बेच दिया उपवन माली ने कब का अब तो ये लगता<br />बंधन में हैं फूल और उनकी ख़ुश्बू ख़तरे में है<br /><br />झेल रहे इस कदर प्रदूषण मिट्टी, पानी और हवा<br />खतरे में हैं सारे मुस्लिम हर हिन्दू खतरे में है<br /><br />इनके बिन सारी दुनिया सचमुच नीरस हो जाएगी<br />भाईचारा, प्यार, वफ़ा इनका जादू ख़तरे में है<br /><br />बोझ उठाकर पूंजी सत्ता का बेचारा वृद्ध हुआ<br />मारा जाएगा `सज्जन’ अब तो टट्टू ख़तरे में है<br />‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-6083849272848340652023-03-01T20:49:00.008+05:302023-03-01T20:51:04.797+05:30घटना: प्रिय कवि से मुलाकात<p> </p><div class="separator" style="clear: both;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjyCr_KCEpubFl5vATo7T7bBGf2o7OYYqIhE8YzRX7ZEPjgE3oJCv-P87S_az7aYhw3rwJQRejsfBtkUQByCmr1daX62dr6ojQyI481hAe8AN42NVRu-9SKg8hPofgJGRixT3BkpHz9ziQFIG-BVeUWCr_mdBJiWKgcdU7LHjs1CPFO4kFbKUDvh4sH8Q" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="" data-original-height="2268" data-original-width="3234" height="354" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjyCr_KCEpubFl5vATo7T7bBGf2o7OYYqIhE8YzRX7ZEPjgE3oJCv-P87S_az7aYhw3rwJQRejsfBtkUQByCmr1daX62dr6ojQyI481hAe8AN42NVRu-9SKg8hPofgJGRixT3BkpHz9ziQFIG-BVeUWCr_mdBJiWKgcdU7LHjs1CPFO4kFbKUDvh4sH8Q=w506-h354" width="506" /></a></div><br /><br />आज प्रिय कवि एवं परम प्रिय मित्र गीत चतुर्वेदी से पुस्तक मेले में हिन्द युग्म के स्टाल पर भेंट हुई। गीत चतुर्वेदी उन चार व्यक्तियों में से एक हैं जिन्हें मैंने अपना उपन्यास समर्पित किया है। आज उन्हें अपने उपन्यास की प्रति भेंट की एवं काफी देर उनसे बातचीत हुई।</div><p></p>‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-12280535483631595172023-01-04T23:19:00.006+05:302023-01-04T23:20:06.617+05:30नवगीत: जीवन की पतंग<br /> प्यार किसी का बनता जब-जब<br />लंबी पक्की डोर<br />जीवन की पतंग छू लेती <br />तब-तब नभ का छोर<br /><br />यूँ तो शत्रु बहुत हैं नभ में <br />इसे काटने को<br />तिस पर तेज हवा आती है <br />ध्यान बाँटने को<br /><br />ऐसे पल में प्रीत जरा सा <br />देती है झकझोर<br /><br />डोर कटी तो <br />अनियंत्रित हो जाने कहाँ गिरेगी<br />मिल जाएगी कहीं धूल में<br />या तरु पर लटकेगी<br /><br />प्रेम डोर बिन <br />ये बेचारी <br />है बेहद कमजोर<br /><br />बने संतुलन, रहे हौसला <br />तो सब कुछ है मुमकिन<br />कभी ढील देनी पड़ती तो <br />सख्ती के भी कुछ दिन<br /><br />उड़ती बिना प्रयत्न कभी तो <br />लेती कभी हिलोर<br />‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-10889377762140192932022-12-20T22:11:00.001+05:302023-01-04T23:20:34.740+05:30 नवगीत: मैना बैठी सोच रही है पिंजरे के दिल मेंमैना बैठी सोच रही है<br />पिंजरे के दिल में<br /><br />मिल जाता है दाना पानी<br />जीवन जीने में आसानी<br />सुनती सबकी बात सयानी<br />फिर भी होती है हैरानी<br /><br />मुझसे ज्यादा ख़ुश तो<br />चूहा है अपने बिल में<br /><br />जब तक बोले मीठा-मीठा<br />सबको लगती है ये सीता<br />जैसे ही कहती कुछ अपना<br />सब कहते बस चुप ही रहना<br /><br />अच्छी चिड़िया नहीं बोलती <br />ऐसे महफ़िल में<br /><br />बहुत सलाखों से टकराई<br />पर पिंजरे से निकल न पाई<br />चला न कुछ भी जादू टोना <br />टूट गया है पंख सलोना <br /><br />जाने किसने <div>इतनी हिम्मत<br /><div>भर दी बुजदिल में</div></div>‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-24870192636691495352022-11-14T12:42:00.002+05:302023-03-26T22:59:46.162+05:30ग़ज़ल: या बिन लादेन होता है या आसाराम होता हैबह्र : 1222 1222 1222 1222<br /><br /><br />या बिन लादेन होता है या आसाराम होता है<br />सभी धर्मों का आख़िर में यही अंजाम होता है<br /><br /><br />बचा लो संस्कृति अपनी बचा लो सभ्यता अपनी<br />सदा आतंकवादी का यही पैगाम होता है<br /><br /><br />है ये दुनिया उसी की झूट जो बोले सलीके से<br />यहाँ सच बोलने वाला सदा नाकाम होता है<br /><br /><br />जहाँ जो धर्म बहुसंख्यक वहीं क्यों है वो ख़तरे में<br />यहूदी, बौद्ध, हिन्दू तो कहीं इस्लाम होता है<br /><br /><br />जिसे पकड़ा गया हो बस वही बदनाम है ‘सज्जन’<br />वगरना कौन धर्मात्मा यहाँ निष्काम होता है<br />‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-28245314036984190812022-09-04T16:15:00.002+05:302022-09-04T19:45:13.903+05:30घटना: प्रिय लिखक से मुलाकातआज आदरणीय उदय प्रकाश जी से उनके निवास पर मिलना हुआ। उन्हें हाल ही में टाइफाइड हुआ था। अभी स्वास्थ्य लाभ कर रह हैं। चलने फिरने में अभी परेशानी हो रही है। वजन 13 किलो कम हो गया है। मैंने अपना पहला उपन्यास जिन चार लोगों को समर्पित किया है उनमें सबसे पहले उदय प्रकाश जी हैं। आज उपन्यास की एक प्रति अपने प्रिय लेखक को भेंट की।<div><br />चित्र में पीछे दीवार पर घड़ी, बुद्ध और लिखा हुआ संदेश "I will survive" उनकी अदम्य जिजीविषा के साथ-साथ इस बात को अभिव्यक्त कर रहे हैं कि सत्य और मानवता हमेशा बचे रहेंगे।</div><div><br /></div><div><a class="en67trww rrjlc0n4 ezidihy3" href="https://www.amazon.in/Likhe-Hain-Khat-Tumhein-Hindi-ebook/dp/B09YRT2698/ref=sr_1_1?qid=1662300357&refinements=p_27%3ASajjan+Dharmendra&s=books&sr=1-1">https://www.amazon.in/Likhe-Hain-Khat-Tumhein-Hindi-ebook/dp/B09YRT2698/ref=sr_1_1?qid=1662300357&refinements=p_27%3ASajjan+Dharmendra&s=books&sr=1-1</a><br /><br /><a class="en67trww rrjlc0n4 ezidihy3" href="https://www.flipkart.com/likhe-hain.../p/itmf6f30ebd6ced6">https://www.flipkart.com/likhe-hain-khat-tumhein/p/itmf6f30ebd6ced6</a></div><div><br /></div><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8-0cMMvn0XCCXDTbNy33I4R4OlyGaafpLwGMm0lZobDaGUdi63AteSaAsJTKUTsnK1iotISTwhHtjK2cHC5_LjvctVZIIJ_hzdZ5oLtunx-qwqRtysr7aNL0aIWkDmKIunlAxtB0jWTMp_OSm70IFvI0pMuWBwnORtM2y6cHmkS3WjCWHlDIQTGxjRA/s4032/IMG_0362.JPG" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="3024" data-original-width="4032" height="381" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8-0cMMvn0XCCXDTbNy33I4R4OlyGaafpLwGMm0lZobDaGUdi63AteSaAsJTKUTsnK1iotISTwhHtjK2cHC5_LjvctVZIIJ_hzdZ5oLtunx-qwqRtysr7aNL0aIWkDmKIunlAxtB0jWTMp_OSm70IFvI0pMuWBwnORtM2y6cHmkS3WjCWHlDIQTGxjRA/w507-h381/IMG_0362.JPG" width="507" /></a></div>‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-61529354779069786312022-09-03T22:53:00.006+05:302022-09-13T17:42:57.619+05:30ग़ज़ल: कब तक झुट्टे को पूजोगे22 22 22 22 22 22<br /><br />जब तक पैसे को पूजोगे<br />चोर लुटेरे को पूजोगे<br /><br />जल्दी सोकर सुबह उठोगे <br />तभी सवेरे को पूजोगे<br /><br />खोलो अपनी आँखें वरना<br />सदा अँधेरे को पूजोगे<br /><br />नहीं पढ़ोगे वीर भगत को<br />तुम बस पुतले को पूजोगे<br /><br />ईश्वर जाने कब से मृत है<br />कब तक मुर्दे को पूजोगे<br /><br />अब तो जान चुके हो सच तुम<br />कब तक झुट्टे को पूजोगे<br />‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-72957997794336223092022-07-19T16:22:00.003+05:302022-07-19T16:22:38.765+05:30ग़ज़ल: एक दिन आँसू पीने पर भी टैक्स लगेगा<div><br /></div>22 22 22 22 22 22<div><br /></div><div>घुटकर मरने जीने पर भी टैक्स लगेगा<br />एक दिन आँसू पीने पर भी टैक्स लगेगा<br /><br />नदी साफ तो कभी न होगी लेकिन एक दिन <br />दर्या, घाट, सफ़ीने पर भी टैक्स लगेगा<br /><br />दंगा, नफ़रत, हत्या कर से मुक्त रहेंगे<br />लेकिन इश्क़ कमीने पर भी टैक्स लगेगा<br /><br />पानी, धूप, हवा, मिट्टी, अम्बर तो छोड़ो <br />एक दिन चौड़े सीने पर भी टैक्स लगेगा<br /><br />भारी हो जायेगा खाना रोटी-चटनी <br />धनिया और पुदीने पर भी टैक्स लगेगा<br /><br />छोड़ो खाद, बीज की बातें एक दिन ‘सज्जन’ <br />बहते लहू, पसीने पर भी टैक्स लगेगा<br /></div>‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-47290896816329024662022-04-30T11:53:00.003+05:302022-04-30T11:53:50.074+05:30मेरा पहला उपन्यास अब छूट के साथ फ़्लिपकार्ट से भी खरीदा जा सकता है<p style="text-align: center;"><a href="https://www.flipkart.com/likhe-hain-khat-tumhein/p/itmf6f30ebd6ced6" target="_blank">खरीदने के लिये यहाँ क्लिक करें</a> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6uvptU-6yGHZnktlrF9BbgKBoHtBE7qDJZd8eKsZv1Bi5UufsH6JjCNGiEUutNBrvSVV94qDxwOxmtiqWphfeP8MepyhUnG6rHVAWjWlV3eALnG0JnojVXkaIq3GZaFZltKx4lO2J-FNDg19qeWtYDghhHePDVNSaG9wJMs8jiqqvgtqrMw0dnMO1hQ/s1200/out%20now.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1200" height="489" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6uvptU-6yGHZnktlrF9BbgKBoHtBE7qDJZd8eKsZv1Bi5UufsH6JjCNGiEUutNBrvSVV94qDxwOxmtiqWphfeP8MepyhUnG6rHVAWjWlV3eALnG0JnojVXkaIq3GZaFZltKx4lO2J-FNDg19qeWtYDghhHePDVNSaG9wJMs8jiqqvgtqrMw0dnMO1hQ/w489-h489/out%20now.jpg" width="489" /></a></div><br /><p style="text-align: center;"><br /></p>‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-16433332651572709902022-04-21T17:09:00.003+05:302022-04-21T17:12:34.199+05:30मेरा पहला उपन्यास अब ई -बुक के रूप में भी प्रकाशित होकर गूगल प्ले बुक्स पर उपलब्ध है।<p style="text-align: center;"><a href="https://play.google.com/store/books/details/Sajjan_Dharmendra_Likhe_Hain_Khat_Tumhein?id=mZhrEAAAQBAJ" target="_blank"><span style="font-size: x-large;">पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें </span></a></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCLV4TUFOfzYDwlvvWfqi5VfJ_v51tWuupTkoT4Q3dR4QN5tJ3Pn_RQPNmQCHNKRmjj6TE7JpvV9amEHRcpbNBEHzKNHe3ttluQNgGJybm9gWsXZX1bcs7LfZlK_llhP1-uY1gP39KyW08MqjCzPkcNK6a2y-ZtTqcMTJZmTGP2LKFp4ZRt4kJH1D_4w/s1200/E-%20book.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1200" height="528" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCLV4TUFOfzYDwlvvWfqi5VfJ_v51tWuupTkoT4Q3dR4QN5tJ3Pn_RQPNmQCHNKRmjj6TE7JpvV9amEHRcpbNBEHzKNHe3ttluQNgGJybm9gWsXZX1bcs7LfZlK_llhP1-uY1gP39KyW08MqjCzPkcNK6a2y-ZtTqcMTJZmTGP2LKFp4ZRt4kJH1D_4w/w528-h528/E-%20book.jpg" width="528" /></a></div><br /><p><br /></p>‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-50402916813423541512022-04-17T10:36:00.002+05:302023-03-26T23:00:02.751+05:30गीत चतुर्वेदी का उपन्यास ‘उस पार’ : एक गद्यात्मक महाकाव्य<p> <span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; text-align: justify; white-space: pre-wrap;">गीत चतुर्वेदी का उपन्यास ‘उस पार’ असल में मिथकों और प्रतीकों के माध्यम से कही गयी इस देश की कहानी है। उपन्यास में वजाल और सिमर्गल नाम के दो साधू दरअसल दो विचारधाराओंं के रूपक हैं। समझने के लिये इन्हें सरदार पटेल और जवाहर लाल नेहरू की विचारधारा भी समझ सकते हैं। यह सिमर्गल और वजाल के चरित्र चित्रण से भी स्पष्ट है। ये दो प्रकार की विचारधाराएँ इस देश में हजारों वर्षों से संघर्षरत किन्तु सहजीवी हैं। इनका जन्म एक ही विचारधारा से हुआ है। ये दो आत्माएँ एक ही मूल आत्मा के दो टुकड़े हैं जिसे हम भारत की संस्कृति कह सकते हैं। </span></p><span id="docs-internal-guid-3cd3a204-7fff-fa0e-77e6-4742a0333ace"><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt; text-align: justify;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">इस देश के हजारों वर्षों के इतिहास में वजाल हमेशा सिमर्गल पर भारी रहा है इसलिये अंतिम प्रतियोगिता (जिसे हम आजादी के संघर्ष का रूपक मानें) में सभी को यकीन था कि वजाल ही विजयी होकर अंततः वज्रगुरु का उत्तराधिकारी बनेगा। यहाँ वज्रगुरू को सत्य एवं अहिंसा की विचारधारा का रूपक माना जा सकता है। यहाँ लेखक ने शिवरस का जिक्र किया है। शिवरस देवों और दैत्यों की रस्साकसी से निकले हलाहल को सहन करने के बाद शिवकंठ से निकला अमृत है। विचारधारा भी तो यही होती है। अपने अंदर मौजूद देव और दानव के बीच हुई रस्साकसी से निकले विष को सहन कर लेने के बाद निकली अमृत धारा ही तो विचारधारा होती है। वज्रगुरु ने शिवरस पिया हुआ था जिसके कारण वो परमसिद्ध और दीर्घजीवी थे। उनकी आत्मा हजारों हजार वर्ष तक अपनी स्मृतियाँ अक्षुण्ण रख सकती थी। शरीर खत्म हो जाता है पर विचारधारा खत्म होने में हजारों हजार वर्ष लगते हैं। इस बात से भी स्पष्ट हो जाता है कि वजाल, सिमर्गल और वज्रगुरु व्यक्ति न होकर प्रतीक मात्र हैं।</span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt; text-align: justify;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था। अंतिम प्रतियोगिता के बाद वज्रगुरु ने सिमर्गल को विजेता घोषित कर दिया। वो अपने ज्ञान और विद्या के बावजूद वजाल के साथ हुई बेईमानी को नहीं भाँप सके या फिर शायद सिमर्गल के स्वभाव के कारण भीतर ही भीतर वो सिमर्गल को अपना उत्तराधिकारी चुनना चाहते थे इसलिये उनके अवचेतन ने उन्हें सच देखने से रोक दिया।</span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt; text-align: justify;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">इसके बाद वज्रगुरु की हत्या और उसके बाद वजाल और सिमर्गल के संघर्ष से तो सभी परिचित ही हैं। न वजाल सिमर्गल को समाप्त कर सकता है न सिमर्गल वजाल को क्योंकि दोनों एक ही आत्मा के दो टुकड़े हैं। पर उनके संघर्ष में वजाल की आत्मा का एक टुकड़ा कटकर अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम कर लेता है। ये टुकड़ा अर्थात मंदिरा इस देश की गंगा-जमुनी तहजीब यानी प्रेम सहिष्णुता और भाईचारे का प्रतीक है। इस कथा का नायक अर्थात मंदिरा का प्रेमी मनोहर इस देश के आम आदमी का प्रतीक है। वजाल और सिमर्गल के संघर्ष में पिस रही मंदिरा की आत्मा को मनोहर का प्रेम और मनोहर की स्मृतियाँ ही बचा सकती हैं। </span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt; text-align: justify;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">वर्तमान में वजाल ने मंदिरा की आत्मा का अपहरण कर लिया है और उसे एक केसरिया झंडे में कैद कर दिया है। यहाँ आकर रूपक बहुत स्पष्ट हो जाता है। वजाल या सिमर्गल जिसके साथ भी मंदिरा की आत्मा जायेगी वही विजयी होगा परन्तु मंदिरा की आत्मा मनोहर के साथ अर्थात इस देश के आम आदमी के साथ ही रहना चाहती है। उपन्यास में मंदिरा की आत्मा को छुड़ाने के लिये मनोहर आधुनिक तकनीक, संगीत, कला, ज्योतिषि, योग, तंत्र इन सबके विशेषज्ञों के की सहायता से एक तोड़ू दस्ता बनाता है। </span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt; text-align: justify;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">मनोहर को रोकने के लिए वजाल तरह-तरह के भ्रम फैलाता है। भाँति-भाँति के झूठ बोलकर मनोहर को मंदिरा के विरुद्ध कर देता है। अब देखना ये है कि आम आदमी अपने तोड़ू दस्ते की मदद से इस देश की गंगा-जमुनी तहजीब यानी प्रेम, सहिष्णुता और भाईचारे को वजाल की कैद से मुक्त करा पायेगा या नहीं और मंदिरा की आत्मा के साथ रहने के लिए अपना शरीर अर्थात झूठा अभिमान और श्रेष्ठताबोध त्याग पायेगा या नहीं। बाकी वजाल और सिमर्गल का संघर्ष तो संभवतः सृष्टि के अंत तक जारी रहेगा।</span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt; text-align: justify;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">इस तरह देखा जाय तो ‘उस पार’ प्रतीकों के माध्यम से कही गई एक ख़ूबसूरत कहानी है जिसमें मिथकों और प्रतीकों के माध्यम से कविता के तत्वों का भी समावेश है इसलिये इसे एक गद्यात्मक महाकाव्य भी कहा जा सकता है। </span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt; text-align: justify;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">इस उपन्यास के अंत तक आते-आते मुझे मार्केज याद आ गये। जादुई यथार्थ, मिथक और विज्ञान इन सबके संगम से रचा उनका उपन्यास ‘एकांत के सौ वर्ष’ याद आ गया। मार्केज ने अपने उपन्यास में जादुई यथार्थ, मिथक और विज्ञान के संगम से लैटिन अमेरिका के उपनिवेशीकरण, विनिवेशीकरण और नव-उपनिवेशीकरण के चक्रों पर एक समानांतर इतिहास लिखा है। गीत चतुर्वेदी का उपन्यास ‘उस पार’ लगभग उसी शैली में स्वतंत्रता पूर्व के भारत और स्वातंत्र्योत्तर भारत का समानांतर इतिहास प्रस्तुत करता है।</span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt; text-align: justify;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">आप इस कहानी के प्रतीकों का कोई दूसरा अर्थ निकालने के लिए भी स्वतंत्र हैं। मेरे पास केवल अपनी समझ के पक्ष में तर्क हैं। आपकी समझ के प्रतिपक्ष में मैं कोई तर्क नहीं दे पाऊँगा क्योंकि गीत चतुर्वेदी के ही शब्दों में कहूँ तो।</span></p><br /><p dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt; text-align: justify;"><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">“मेरे पास प्रेम से बड़ा कोई तर्क नहीं।” </span></p><div><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div></span>‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-86011508600222092832022-04-14T20:22:00.005+05:302022-04-14T20:28:18.925+05:30मेरा पहला उपन्यास रेडग्रैब बुक्स से प्रकाशित होकर अमेजन पर उपलब्ध है।<p style="text-align: center;"><span style="font-size: x-large;"><a href="https://amzn.to/3jwGjPo" target="_blank">अमेजन से खरीदने के लिये यहाँ क्लिक करें</a> </span></p><p style="text-align: center;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEPQrqxK69rilSOWTItK01GPBBby3eW0cKqKtoty3d0yaGAnB4XOn1zVsg3vLqpq8-l1SssAm925XTk98Zl1IjKQbwv5goxfWntZe9mdE0YpSqmOypHCBQGyrZ4u9wwEgbuDHUgneR60kQ-eC6SphCQyKkIM-X2iAprE8LvHKPgq0iluycVRcem_YLNQ/s1200/gobal.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1200" height="529" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEPQrqxK69rilSOWTItK01GPBBby3eW0cKqKtoty3d0yaGAnB4XOn1zVsg3vLqpq8-l1SssAm925XTk98Zl1IjKQbwv5goxfWntZe9mdE0YpSqmOypHCBQGyrZ4u9wwEgbuDHUgneR60kQ-eC6SphCQyKkIM-X2iAprE8LvHKPgq0iluycVRcem_YLNQ/w529-h529/gobal.jpg" width="529" /></a></div><br /><span style="font-size: large;"><br /></span><p></p>‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-22332288573313045332022-04-12T21:12:00.003+05:302022-04-12T21:16:36.373+05:30मेरा पहला उपन्यास शीघ्र आ रहा है<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZLPl-QjfTFpKhgt4sv8JMAgmPHUbyLrat0XPIrh5PKw2ijdP4UNg2vDMAwCnkEYQlq34lwI9vowy3ZjR99KyLVxpM6s5-cHtuOJaN6VNX1pPuiDRVllxgYTBnUGSUihRDlSy1CSokyQaf-8SjLycrcetp3LHObuDgqcX9KklRepjf1qVpGrexpA6fEQ/s1200/coming%20soon.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1200" height="517" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZLPl-QjfTFpKhgt4sv8JMAgmPHUbyLrat0XPIrh5PKw2ijdP4UNg2vDMAwCnkEYQlq34lwI9vowy3ZjR99KyLVxpM6s5-cHtuOJaN6VNX1pPuiDRVllxgYTBnUGSUihRDlSy1CSokyQaf-8SjLycrcetp3LHObuDgqcX9KklRepjf1qVpGrexpA6fEQ/w517-h517/coming%20soon.jpg" width="517" /></a></div><br /><p></p>‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-77695804483334252382022-04-04T17:36:00.004+05:302022-04-04T17:36:54.990+05:30नवगीत : जिन्दगी जलेबी सीजिन्दगी जलेबी सी<br />उलझी है <br />मीठी है<br /><br />दुनिया की चक्की में <br />मैदे सा पिसना है<br />प्यार की नमी से <br />मन का खमीर उठना है <br /><br />गोल-गोल घुमा रही<br />सूरज की<br />मुट्ठी है<br /><br />तेल खौलता दुख का<br />तैर कर निकलना है<br />वक़्त की कड़ाही में<br />लाल-लाल पकना है<br /><br />चाशनी सुखों की<br />पलकें बिछाये <br />बैठी है<br /><br />कुरकुरा बने रहना<br />ज़्यादा मत डूबना<br />उलझन है अर्थहीन<br />इससे मत ऊबना<br /><br />मानव के हाथ लगी<br />ईश्वर की<br />चिट्ठी है<br />‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-10177079073013411142022-02-19T23:55:00.002+05:302022-02-19T23:56:57.898+05:30समय सत्ता यू ट्यूब चैनल पर मेरी ग़ज़ल "ये झूठ है अल्लाह ने इंसान बनाया" का वीडिओ देखें<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><iframe allowfullscreen="" class="BLOG_video_class" height="465" src="https://www.youtube.com/embed/clzb9tZCJlQ" width="560" youtube-src-id="clzb9tZCJlQ"></iframe></div><br /><p></p>‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-66501059019798465932022-01-01T10:43:00.000+05:302022-01-01T10:43:56.524+05:30ग़ज़ल: हुये जिस्म उरियाँ तो ठंडक हुई कमबड़ा जादुई है तेरा साथ हमदम<br />हुये जिस्म उरियाँ तो ठंडक हुई कम<br /><br />समंदर कभी भर सका है न जैसे<br />मिले प्यार कितना भी लगता सदा कम<br /><br />ये सूरत, ये मेधा, ये बातें, अदाएँ<br />कहीं बुद्ध से बन न जाऊँ मैं गौतम<br /><br />कुहासे को क्या छू दिया तूने लब से<br />यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम<br /><br />मुबाइल मुहब्बत का इसको थमा दे<br />मेरे दिल का बच्चा मचाता है ऊधम<br />‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-33069425206071904402021-12-23T14:19:00.002+05:302021-12-23T14:19:53.196+05:30नवगीत : पानी और पारा<br />पूछा मैंने पानी से <br />क्यूँ सबको गीला कर देता है<br /><br />पानी बोला <br />प्यार किया है<br />ख़ुद से भी ज़्यादा औरों से<br />इसीलिये चिपका रह जाता हूँ<br />मैं अपनों से<br />गैरों से<br /><br />हो जाता है गीला-गीला<br />जो भी मुझको छू लेता है<br /><br />अगर ठान लेता <br />मैं दिल में <br />पारे जैसा बन सकता था<br />ख़ुद में ही खोया रहता तो<br />किसको गीला कर सकता था?<br /><br />पारा बाहर से चमचम पर<br />विष अन्दर-अन्दर सेता है <br /><br />वो तो अच्छा है <br />धरती पर<br />नाममात्र को ही पारा है<br />बंद पड़ा है बोतल में वो <br />अपना तो ये जग सारा है<br /><br />मेरा गीलापन ही है जो<br />जीवन की नैय्या खेता है<br />‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-13263866979289239592021-12-20T14:09:00.004+05:302021-12-20T14:09:47.300+05:30नवगीत : रजनीगंधारजनीगंधा<br />तुम्हें विदेशी<br />कहे सियासत <br /><br />माना पितर तुम्हारे जन्मे <br />सात समंदर पार<br />पर तुम जन्मे इस मिट्टी में<br />यहीं मिला घर-बार<br /><br />देख रही सब<br />फिर क्यों करती<br />हवा शरारत<br /><br />रंग तुम्हारा रूप तुम्हारा<br />लगे मोगरे सा<br />फिर भी तुम्हें स्वदेशी कहती<br />नहीं कभी पुरवा <br /><br />साफ हवा में<br />किसने घोली<br />इतनी नफ़रत <br /><br />बन किसान का साथी यूँ ही<br />खेतों में उगना <br />गाँव, गली, घर, नगर, डगर सब<br />महकाते रहना<br /><br />मिट जाएगी <br />कर्म इत्र से <br />बू-ए-तोहमत<br /> ‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-54767774772587885402021-12-03T14:44:00.002+05:302021-12-03T14:44:45.025+05:30नवगीत : रखें सावधानी कुहरे में<br />सूरज दूर गया धरती से<br />तापमान लुढ़का <br />बड़ा पारदर्शी था पानी<br />बना सघन कुहरा<br /><br />लोभ हवा में उड़ने का <br />कुछ ऐसा उसे लगा<br />पानी जैसा परमसंत भी<br />संयम खो बैठा<br /><br />फँसा हवा के अलख जाल में <br />हो त्रिशंकु लटका<br /><br />आता है सबके जीवन में<br />एक समय ऐसा<br />आदर्शों से समझौता <br />करवा देता पैसा<br /><br />किन्तु कुहासा कुछ दिन का <br />स्थायी साफ हवा<br /><br />जैसे-जैसे सूरज ऊपर <br />चढ़ता जायेगा<br />बूँद-बूँद कर कुहरे का मन<br />गलता जायेगा<br /><br />रखें सावधानी कुहरे में<br />घटे न दुर्घटना<br />‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-37567248231423789732021-11-06T12:18:00.004+05:302021-11-06T12:19:08.358+05:30ग़ज़ल: उजाला पढ़ रहे थे देर तक अब थक गये दीपक1222 1222 1222 1222<br /><br />उजाला पढ़ रहे थे देर तक अब थक गये दीपक<br />दुबारा स्नेह भर दें हम बस इतना चाहते दीपक<br /><br />हैं जिनके कर्म काले, वो अँधेरे के मुहाफ़िज़ हैं<br />सब उजले कर्म वाले जल रहे बन शाम से दीपक <br /><br />दिये का कर्म है जलना दिये का धर्म है जलना <br />तुफानी रात में ये सोचकर हैं जागते दीपक<br /><br />अगर बढ़ता रहा यूँ ही अँधेरा जीत जाएगा<br />उजाले के मुहाफिज हैं, तिमिर से लड़ रहे दीपक<br /><br />इन्हें समझाइये इनसे बनी सरहद उजाले की<br />बुझे कल दीप इतने हो गये हैं अनमने दीपक<br /><br />अँधेरे से तो लड़ लेंगे मगर प्रभु जी सदा हमको <br />बचाना ब्लैक होलों से यही वर माँगते दीपक<br /><br />जलाने में पराये दीप तुम तो बुझ गये ‘सज्जन’ <br />तुम्हारी लौ लिये दिल में जले सौ-सौ नये दीपक<br />‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5466054364465468633.post-5802046386677771282021-11-04T11:48:00.004+05:302021-11-04T11:49:39.763+05:30नवगीत : चमक रही कंदीलनन्हा दीपक<br />तम से लड़ता<br />चमक रही कंदील<br /><br />तेज हवा से<br />रक्षा करतीं<br />ममता की दीवारें<br />रंग बिरंगे<br />इस मंजर पर<br />लक्ष्मी खुद को वारें <br /><br />श्वेत रश्मि को<br />सौ रंगों में<br />करती है तब्दील<br /><br />धीरे-धीरे<br />नभ तक जाकर<br />तारा बन जायेगा<br />भूली भटकी<br />दुनिया को ये<br />रस्ता दिखलायेगा<br /><br />टँगा हुआ है<br />सुंदर सपना<br />पकड़े सच की कील<br /><br />अखिल सृष्टि यदि <br />राम कृष्ण से <br />ले लें सीता राधा <br />कभी न कोई<br />युद्ध कहीं हो <br />कभी न रोए ममता <br /><br />अहंकार में <br />मतवाला जग <br />फौरन बने सुशील‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.com4