मैं कभी न प्यार समझ पाया।
जीवन में पहली बार किया, जब उससे मैंने प्यार किया,
जग बोला है ये प्यार नहीं, है नासमझी ये बचपन की,
मेरे उन कोमल भावों को, उन भोली-मीठी आहों को,
यूँ बेदर्दी से कुचल-मचलकर, जग ने जाने क्या पाया?
मैं कभी न यार समझ पाया,
मैं कभी न प्यार समझ पाया।
उसका दिल तोड़ बना निदर्यी, जग बोला यार है यही सही,
जिसमें हो तेरा ये समाज सुखी, सच-झूठ छोड़, कर यार वही,
मेरे पापों को छुपा-वुपाकर, मुझको पापी बना-वनाकर,
जग ने जाने क्या पाया?
मैं कभी न यार समझ पाया,
मैं कभी न प्यार समझ पाया।
जग कहता अब इससे प्यार करो, इस पर जीवन न्यौछार करो,
मेरे भीतर का प्रेम कुचल, और वहीं चला नफरत का हल,
हैं बीज घृणा के जब बोये, किस तरह प्रेम पैदा होये?
अब कहता सारा जग मुझसे,
तू कभी न यार समझ पाया,
तू कभी न प्यार समझ पाया।