रविवार, 15 जनवरी 2012

ग़ज़ल : न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए

न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए
न इतने भाव भर दिल में के मेरी आँख गल जाए

सुना है जब भी तू देता है छप्पर फाड़ देता है
न इतना हुस्न दे उसको के रब तू ही मचल जाए

रहूँ जिसके लिए जिंदा कुछ ऐसा छोड़ दुनिया में
कहीं मुर्दा समझ मुझको न मेरी मौत टल जाए

बहुत गीला हुआ आटा, बड़ा ठंढा तवा है, पर
न इतनी आग दे चूल्हे में रब, रोटी ही जल जाए

गुजारिश है मेरे मालिक न देना नूर इतना भी
के जिसको प्यार से छू दूँ वो सोने में बदल जाए

7 टिप्‍पणियां:

  1. न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए
    न इतने भाव भर दिल में के मेरी आँख गल जाए

    वाह , क्या बात है ..बहुत खूबसूरत गज़ल

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  2. संगीता स्वरुप ( गीत ) ने आपकी पोस्ट " ग़ज़ल : न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए
    न इतने भाव भर दिल में के मेरी आँख गल जाए

    वाह , क्या बात है ..बहुत खूबसूरत गज़ल

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  3. रहूँ जिसके लिए जिंदा कुछ ऐसा छोड़ दुनिया में
    कहीं मुर्दा समझ मुझको न मेरी मौत टल जाए
    kya baat hai !

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  4. रश्मि प्रभा... ने आपकी पोस्ट " ग़ज़ल : न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    रहूँ जिसके लिए जिंदा कुछ ऐसा छोड़ दुनिया में
    कहीं मुर्दा समझ मुझको न मेरी मौत टल जाए
    kya baat hai !

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  5. "गुजारिश है मेरे मालिक न देना नूर इतना भी
    के जिसको प्यार से छू दूँ वो सोने में बदल जाए"

    वाह !

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