सोमवार, 30 मई 2016

ग़ज़ल : वो यहाँ बेलिबास रहती है

बह्र : २१२२ १२१२ २२

बन के मीठी सुवास रहती है
वो मेरे आसपास रहती है

उसके होंठों में झील है मीठी
मेरे होंठों में प्यास रहती है

आँख ने आँख में दवा डाली
अब जुबाँ पर मिठास रहती है

मेरी यादों के मैकदे में वो
खो के होश-ओ-हवास रहती है

मेरे दिल में न झाँकिये साहिब
वो यहाँ बेलिबास रहती है

रविवार, 1 मई 2016

ग़ज़ल : यही सच है कि प्यार टेढ़ा है

बह्र : २१२२ १२१२ २२

ये दिमागी बुखार टेढ़ा है
यही सच है कि प्यार टेढ़ा है

स्वाद इसका है लाजवाब मियाँ
क्या हुआ गर अचार टेढ़ा है

जिनकी मुट्ठी हो बंद लालच से
उन्हें लगता है जार टेढ़ा है

खार होता है एकदम सीधा
फूल है मेरा यार, टेढ़ा है

यूकिलिप्टस कहीं न बन जाये
इसलिए ख़ाकसार टेढ़ा है