गुरुवार, 29 अगस्त 2013

ग़ज़ल : कोई चले न जोर तो जूता निकालिये

बह्र : मफऊलु फायलातु मफाईलु फायलुन
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चंदा स्वयं हो चोर तो जूता निकालिये
सूरज करे न भोर तो जूता निकालिये

वेतन है ठीक  साब का भत्ते भी ठीक हैं
फिर भी हों घूसखोर तो जूता निकालिये

देने में ढील कोई बुराई नहीं मगर
कर काटती हो डोर तो जूता निकालिये 

जिनको चुना है आपने करने के लिए काम
करते हों सिर्फ़ शोर तो जूता निकालिये

हड़ताल, शांतिपूर्ण प्रदर्शन, जूलूस तक
कोई चले न जोर तो जूता निकालिये

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