मंगलवार, 20 दिसंबर 2022

नवगीत: मैना बैठी सोच रही है पिंजरे के दिल में

मैना बैठी सोच रही है
पिंजरे के दिल में

मिल जाता है दाना पानी
जीवन जीने में आसानी
सुनती सबकी बात सयानी
फिर भी होती है हैरानी

मुझसे ज्यादा ख़ुश तो
चूहा है अपने बिल में

जब तक बोले मीठा-मीठा
सबको लगती है ये सीता
जैसे ही कहती कुछ अपना
सब कहते बस चुप ही रहना

अच्छी चिड़िया नहीं बोलती
ऐसे महफ़िल में

बहुत सलाखों से टकराई
पर पिंजरे से निकल न पाई
चला न कुछ भी जादू टोना
टूट गया है पंख सलोना

जाने किसने 
इतनी हिम्मत
भर दी बुजदिल में

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