बुधवार, 9 दिसंबर 2009

रात भर नींद में गुनगुनाता रहा

ख्वाब में तुम मेरे आती जाती रहीं,

रात भर नींद में गुनगुनाता रहा।

 

दिन निकल ही गया फाइलों में मगर,

प्रीति की है कुछ ऐसी सनम रहगुजर,

व्यस्त जब तक था मैं, मन था बहला हुआ,

पर अकेले में ये कसमसाता रहा।

 

साँझ यादों की मधु ले के फिर आ गई,

रात तक तुम नशा बन के थीं छा गई,

यूँ तो मदहोश था, फिर भी बेहोशी में,

नाम तेरा ही मैं बड़बड़ाता रहा।

 

फिर सुबह हो गई, रात फिर सो गई,

चाय के स्वाद में, याद फिर खो गई,

जब मैं दफ्तर गया न किसी को लगा,

रात बिस्तर पे मैं छटपटाता रहा।

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