बुधवार, 1 सितंबर 2010

भूख

न जाने भूख क्यों बनाई ईश्वर ने?
और पेट क्यों दिया इंसान को?

क्या चला जाता ईश्वर का,
अगर उसने हमें ऐसी त्वचा दी होती,
जो सूर्य की रोशनी से,
सीधे ऊर्जा प्राप्त कर सके,
मुफ़्त की ऊर्जा;

अगर ऐसा होता,
तो लोगों को भूख ना लगती,
लोग दाल रोटी की फ़िकर ना करते,
तब लोग काम करते,
केवल अहंकार की तुष्टि के लिए,
एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए,
और जीवन का सारा संघर्ष,
अमीरों के बीच सिमट कर रह जाता;
क्योंकि गरीब बेचारे,
आराम से दिन भर,
धूप लिया करते,
ना कोई चिन्ता ना कोई फ़िकर,
कितना सुखी हो जाता गरीबों का जीवन;

मगर,
ईश्वर ने पेट देकर,
भूख देकर,
गरीबों के साथ छल किया है,
और अमीरों की तरफ़दारी की है,
ताकि गरीब अपने लिए,
जीवन भर,
रोटी दाल का इन्तजाम करते रह जाएँ,
और अमीर,
दिन ब दिन अमीर होते जाएँ,
गरीबों का खून चूसकर;

गरीबों के इस खून को बेचकर,
अमीर,
ईश्वर के लिए नए नए घर बनवाते जाएँ,
और गरीब,
अपने खून से बने उन घरों में,
मत्था टेककर,
अपने को धन्य समझते रहें,
ईश्वर की जयजयकार करते रहें,
और चलती रहे,
ईश्वर की दाल रोटी।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा कविता.........

    परन्तु भाई !

    मज़ा तो तब होता जब सूरज की भी ज़रूरत न पड़ती.............

    बिना सौर ऊर्जा के भी हम यदि उर्जस्वित रहते तो मज़ा आ जाता

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  2. ईश्वर पर भी कटाक्ष ....अच्छी प्रस्तुति

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  3. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 7- 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  4. अमीर ग़रीब की ये लड़ाई तो हमेशा से चलती आ रही है और चलती रहेगी ....
    अच्छी रचना है ....

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  5. तीखी लेकिन साफ साफ..उत्तम रचना.

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  6. sajjan ji, aapki rachna keval kori kalpna nahin,
    balki eak kadvi sachchai hai. ishwar ne sachmuch hi aesa kiya hai.

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जो मन में आ रहा है कह डालिए।