बुधवार, 11 नवंबर 2009

विद्रोहों को स्वर दो।

विद्रोहों को स्वर दो।

 

जब-जब तुम बने शांतिप्रिय जन,

तब-तब लूटें तुमको दुर्जन,

हो बहुत सह चुके बन सज्जन, तुम क्रांति आज कर दो।

विद्रोहों को स्वर दो।

 

हम सबकी ही मेहनत का धन,

स्विस बैंकों में धर, कर निर्धन

हमको, करते जो ऐश सखे, टुकड़े हजार कर दो।

विद्रोहों को स्वर दो।

 

जनता है जिनसे ऊब चुकी,

सेना भी है सह खूब चुकी,

उन भारत के गद्दारों में, सब मिल कर भुस भर दो।

विद्रोहों को स्वर दो।

 

जो लड़ते हैं जा संसद में,

जूतों लातों से, घूँसों से,

उन सारे लंठ गँवारों को, तुम तार तार कर दो।

विद्रोहों को स्वर दो।

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