शुक्रवार, 24 जून 2011

कविता : माँ की गाली

कभी माँ थी मैं तुम्हारी
आज केवल
एक स्त्री देह रह गई
क्योंकि तुमने
गुस्से में ही सही
दूसरों को गाली देने के लिए ही सही
‘माँ’ शब्द को
अपशब्दों से जोड़कर
नए शब्दों को
पैदा करना सीख लिया है

14 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सही कहा एक कटु सत्य है ये।

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  2. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (25.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  3. सही बात| दूसरे की माँ हुई तो क्या, है तो माँ ही|

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  4. कोफ़्त होती है , लोग गुस्से में ही नहीं , प्यार से बतियाते भी ये शब्द इस्तेमाल करते हैं ..चुप नहीं रह पाती , पूछ लेती हूँ कई बार इस शब्द का मतलब जानते हैं या नहीं ?

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  5. एक पवित्र शब्द का कितना गलत इस्तेमाल हो रहा है , दुर्भाग्यपूर्ण

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  6. एक कटु सत्य है ।माँ तो माँ ही होती ही|...धन्यवाद..

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  7. यथार्थपरक समसामयिक विमर्श करती कविता के लिए हार्दिक बधाई...

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  8. कटु सत्य को बड़ी सरलता से कह दिया ......

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  9. badi bebaki ke saath apne is katu saty ko likha hai.wah.shayad kuch log seekh le saken......

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  10. अना जी, वंदना जी, सत्यम जी, अलबेला खत्री जी, नवीन भाई, वाणी गीत जी, अजय कुमार जी, माहेश्वरी जी, वीना जी, शरद सिंह जी, निवेदिता जी एवं मृदुला जी आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया।

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