कभी माँ थी मैं तुम्हारी
आज केवल
एक स्त्री देह रह गई
क्योंकि तुमने
गुस्से में ही सही
दूसरों को गाली देने के लिए ही सही
‘माँ’ शब्द को
अपशब्दों से जोड़कर
नए शब्दों को
पैदा करना सीख लिया है
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
satik baat likha hai aapne.......bravo
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा एक कटु सत्य है ये।
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (25.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
achhi kavita
जवाब देंहटाएंसही बात| दूसरे की माँ हुई तो क्या, है तो माँ ही|
जवाब देंहटाएंकोफ़्त होती है , लोग गुस्से में ही नहीं , प्यार से बतियाते भी ये शब्द इस्तेमाल करते हैं ..चुप नहीं रह पाती , पूछ लेती हूँ कई बार इस शब्द का मतलब जानते हैं या नहीं ?
जवाब देंहटाएंएक पवित्र शब्द का कितना गलत इस्तेमाल हो रहा है , दुर्भाग्यपूर्ण
जवाब देंहटाएंएक कटु सत्य है ।माँ तो माँ ही होती ही|...धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंबिल्कुल कड़ुवा सच
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
यथार्थपरक समसामयिक विमर्श करती कविता के लिए हार्दिक बधाई...
जवाब देंहटाएंकटु सत्य को बड़ी सरलता से कह दिया ......
जवाब देंहटाएंbadi bebaki ke saath apne is katu saty ko likha hai.wah.shayad kuch log seekh le saken......
जवाब देंहटाएंअना जी, वंदना जी, सत्यम जी, अलबेला खत्री जी, नवीन भाई, वाणी गीत जी, अजय कुमार जी, माहेश्वरी जी, वीना जी, शरद सिंह जी, निवेदिता जी एवं मृदुला जी आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंThis site was... how do I say it? Relevant!! Finally I have found something
जवाब देंहटाएंthat helped me. Thanks!
my web site Ball Of Foot Pain treatment