सोमवार, 2 जुलाई 2012

नवगीत : नीम तले

नीम तले सब ताश खेलते
रोज सुबह से शाम
कई महीनों बाद मिला है
खेतों को आराम

फिर पत्तों के चक्रव्यूह में
धूप गई है हार
कुंद कर दिए वीर प्याज ने
लू के सब हथियार
ढाल पुदीने सँग बन बैठे
भुनकर कच्चे आम

छत पर जाकर रात सो गई
खुले रेशमी बाल
भोर हुई सूरज ने आकर
छुए गुलाबी गाल
बोली छत पर लाज न आती
तुमको बुद्धू राम

शहर गया है गाँव देखने
बड़े दिनों के बाद
समय पुराना नए वक्त से
मिला महीनों बाद
फिर से महक उठे आँगन में
रोटी बोटी जाम

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ... गज़ब के सभी छंद ... मज़ा अ गया धर्मेन्द्र जी ... अभी अभी आपकी गज़ल पढ़ के आ रहा हूँ अब ये नवगीत ... आज तो छा गए अप ...

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