मंगलवार, 3 मार्च 2015

ग़ज़ल : गाँव कम हैं प्रधान ज्यादा हैं

बह्र : २१२२ १२१२ २२

फ़स्ल कम है किसान ज्यादा हैं
ये ज़मीनें मसान ज्यादा हैं

टूट जाएँगे मठ पुराने सब
देश में नौजवान ज़्यादा हैं

हर महल की यही कहानी है
द्वार कम नाबदान ज़्यादा हैं

आ गई राजनीति जंगल में
जानवर कम, मचान ज़्यादा हैं

हाल मत पूछ देश का ‘सज्जन’
गाँव कम हैं प्रधान ज्यादा हैं

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