शनिवार, 19 मार्च 2016

ग़ज़ल : झूठ मिटता गया देखते देखते

२१२ २१२ २१२ २१२

झूठ मिटता गया देखते देखते
सच नुमायाँ हुआ देखते देखते

तेरी तस्वीर तुझ से भी बेहतर लगी
कैसा जादू हुआ देखते देखते

तार दाँतों में कल तक लगाती थी जो
बन गई अप्सरा देखते देखते

झुर्रियाँ मेरे चेहरे की बढने लगीं
ये मुआँ आईना देखते देखते

वो दिखाने पे आए जो अपनी अदा
हो गया रतजगा देखते देखते

शे’र उनपर हुआ तो मैं माँ बन गया
बन गईं वो पिता देखते देखते

2 टिप्‍पणियां:

जो मन में आ रहा है कह डालिए।