मंगलवार, 29 मार्च 2016

ग़ज़ल : जहाँ हो मुहब्बत वहीं डूब जाना

बह्र : १२२ १२२ १२२ १२२

मेरी नाव का बस यही है फ़साना
जहाँ हो मुहब्बत वहीं डूब जाना

सनम को जिताना तो आसान है पर
बड़ा ही कठिन है स्वयं को हराना

न दिल चाहता नाचना तो सुनो जी
था मुश्किल मुझे उँगलियों पर नचाना

बढ़ा ताप दुनिया का पहले ही काफ़ी
न तुम अपने चेहरे से जुल्फ़ें हटाना

कहीं तोड़ लाऊँ न सचमुच सितारे
सनम इश्क़ मेरा न तुम आजमाना

ये बेहतर बनाने की तरकीब उसकी
बनाकर मिटाना मिटाकर बनाना

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