अंधकार भारी पड़ता जब
दीप अकेला चलता है
विश्व प्रकाशित हो जाता जब
लाखों के सँग जलता है
हैं प्रकाश कण छुपे हुये
हर मानव मन के ईंधन में
चिंगारी मिल जाये तो
भर दें उजियारा जीवन में
इसीलिए तो ज्योति पर्व से
हर अँधियारा जलता है
ज्योति बुझाने की कोशिश जब
कीट पतंगे करते हैं
जितना जोर लगाते
उतनी तेज़ी से जल मरते हैं
अंधकार के प्रेमी को
मिलती केवल असफलता है
मन का ज्योति पर्व मिलजुल कर
हम निशि दिवस मनायेंगे
कई प्रकाश वर्ष तक जग से
तम को दूर भगायेंगे
सब देखेंगे दूर खड़ा हो
हाथ अँधेरा मलता है
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
प्रेरक रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
हटाएंज्योति पर्व शायद इसलिए ही अमावस मिएँ होता है.. की दीप दीप से पूर्ण अन्धकार गायब हो जाये ...
जवाब देंहटाएंआपको हादिक बधाई दीपावली की ...
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नासवा जी
हटाएंdipavali ki shubhkamnaye
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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