शनिवार, 24 जुलाई 2010

एक बदली

एक बदली,
पानी से लबालब भरी हुई,
समुन्दर के घर से भागकर,
पहाड़ों के पास पहुँच गई,
हरे भरे पहाड़ों को देखकर,
उसका मन ललचा उठा,
वो उन पर चढ़ती ही गई,
आगे बढ़ती ही गई,
फिर अचानक उसने सोचा,
अरे मैं तो बहुत दूर आ गई,
अब लौटना चाहिए,
उसने पलट कर देखा तो,
हर तरफ उसे पहाड़ ही पहाड़ नजर आये,
वह भटकती रही, भटकती रही,
और पहाड़ कसते रहे अपना शिकंजा,
कब तक लड़ती वो शक्तिशाली पहाड़ों से,
आखिरकार वो बरस ही पड़ी,
और मिट गई,
पर बाकी की बदलियों ने इससे कोई सबक नहीं लिया,
वो अब भी ललचाकर पहाड़ों में आती हैं,
और अपना अस्तित्व मिटाकर खो जाती हैं।

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