सोमवार, 31 जनवरी 2011

ग़ज़ल : कबूतर छल रहा है

कबूतर छल रहा है
बवंडर पल रहा है ।१।

वही है शोर करता
जो सूखा नल रहा है ।२।

मैं लाया आइना क्यूँ
ये उसको खल रहा है ।३।

दिया ही तो जलाया
महल क्यूँ गल रहा है ।४।

छुवन वो प्रेम की भी
अभी तक मल रहा है ।५।

डरा बच्चों को ही अब
बड़ों का बल रहा है ।६।

वो मेरे स्नेह से ही
मेरा दिल तल रहा है ।७।

छुआ जिसको खुदा ने
वही घर जल रहा है ।८।

दहाड़े जा रहा वो
जो गीदड़ कल रहा है ।९।

जिसे सींचा लहू से
वही खा फल रहा है ।१०।

उगा तो जल चढ़ाया
अगिन दो ढल रहा है ।११।

2 टिप्‍पणियां:

  1. कैसे तारीफ़ करून समझ में नहीं आ रहा है ....कमाल के लिखते है आप.......अद्वितीय

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  2. मैं लाया आइना क्यूँ
    ये उसको खल रहा है

    दहाड़े जा रहा जो
    वो गीदड़ कल रहा है


    छोटी बहर में कमाल के शेर...........बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है.

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जो मन में आ रहा है कह डालिए।