सोमवार, 23 मई 2011

ग़ज़ल : सूरज उगते ही सारी यादें सो जाती हैं

चंदा तारे बन रातों में नभ को जाती हैं।
सूरज उगते ही सारी यादें सो जाती हैं।

आँखों में जब तक बूँदें तब तक इनका हिस्सा,
निकलें तो खारा पानी बनकर खो जाती हैं।

सागर की करतूतें बादल तट पर लिख जाते,
लहरें आकर पल भर में सबकुछ धो जाती हैं।

भिन्न उजाले में लगती हैं यूँ तो सब शक्लें,
किंतु अँधेरे में जाकर इक सी हो जाती हैं।

हवा सुगंधित हो जाये कितना भी पर ‘सज्जन’,
मीन सभी मरतीं जल से बाहर जो जाती हैं।

7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह धर्मेन्द्र भाई वाह| एक और शानदार गजल आप की तरफ से| बधाई हो|

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  2. आँखों में जब तक बूँदें तब तक इनका हिस्सा
    निकलें तो खारा पानी बनकर खो जाती हैं।
    बहुत प्यारा शेर.....

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  3. शुषमा जी, नवीन जी, वीना जी एवं संगीता जी आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया

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  4. आँखों में जब तक बूँदें तब तक इनका हिस्सा
    निकलें तो खारा पानी बनकर खो जाती हैं...

    गहरे भाव हैं ... बहुत सी लाजवाब शेर है ...

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  5. बहुत बहुत शुक्रिया दिगंबर नासवा जी।

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