शनिवार, 18 दिसंबर 2010

ग़ज़ल : ख़ुमारी है मय की

ख़ुमारी है मय की गुलों की नज़ाकत
ख़ुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत ।१।

लगे कोयले सा खदानों में हीरा
बना देती है नीच नीचों की सोहबत ।२।

तुझे याद जब जब करे मन का सागर
सुनामी है उठती मचाती कयामत ।३।

लिखा दूसरों का जो पढ़ते हैं भाषण
वही लिख रहे हैं गरीबों की किस्मत ।४।

डकैती घोटाले क़तल तस्कारी सब
इन्हीं की बनी आज लॉकर सियासत ।५।

सँवारूँ मैं कैसे नहीं रूह दिखती
मुझे आइने से है इतनी शिकायत ।६।

न ही कौम पर दो न ही दो ख़ुदा पे
जो देनी ही है देश पर दो शहादत ।७।

करो चाहे जो भी करो पर लगन से
है ऐसे भी होती ख़ुदा की इबादत ।८।

नहीं हाथियों पर जो रक्खोगे अंकुश
चमन नष्ट होगा मरेगा महावत ।९।

न जाने वो थे बुत या थे अंधे बहरे
मरा न्याय जब भी भरी थी अदालत ।१०।

न समझे तु प्रेमी तो पागल समझ ले
है जलना शमाँ पे पतंगों की आदत ।११।

मैं जन्मों से बैठा तेरे दिल के बाहर
कभी तो करेगी तु मेरा भी स्वागत ।१२।

नहीं झूठ का मोल कौड़ी भी लेकिन
लगाता हमेशा यही सच की कीमत ।१३।

मिलेगी लुटेगी न जाने कहाँ कब
सदा से रही बेवफा ही ये दौलत ।१४।

नहीं चाहता मैं के तोड़ूँ सितारे
लिखूँ सच मुझे दे तु इतनी सी हिम्मत ।१५।

ग़ज़ल में तेरा हुस्न भर भी अगर दूँ
मैं लाऊँ कहाँ से ख़ुदा की नफ़ासत ।१६।

बरफ़ के बने लोग मिलने लगे तो
नहीं रह गई और उठने की हसरत ।१७।

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

हवाई जहाज

हवाई जहाज को
दुनिया और ख़ासकर शहर
बड़े खूबसूरत नजर आते हैं
सपाट चमचमाती सड़कों से उड़ना
रुई के गोलों जैसे
सफेद बादलों के पार जाना
हर समय चमचमाते हुए
हवाई अड्डों पर उतरना या खड़े रहना
दरअसल
असली दुनिया क्या होती है
हवाई जहाज
ये जानता ही नहीं
वो अपना सारा जीवन
असली दुनिया से दूर
सपनों की चमकीली दुनिया में ही बिता देता है

हवाई जहाज भी क्या करे
उसका निर्माण किया ही गया है
सपनों की दुनिया में रहने के लिए
वो रिक्शे या साइकिल की तरह
गंदी गलियों और
टूटी सड़कों पर नहीं चल सकता
कीचड़ या कचरे की बदबू नहीं सहन कर सकता
शरीर पर जरा सी भी खरोंच लग जाय
तो सड़ने लगता है
विश्व का सबसे अच्छा ईंधन
सबसे ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल करता है

हवाई जहाज
या उसके सपनों की दुनिया से
मुझे कोई ऐतराज नहीं
ऐतराज इस बात से है
कि हवाई जहाज के हाथ में ही
असली दुनिया की बागडोर है
वह उस जगह बैठकर
आम इंसानों के लिए नियम बनाता है
जहाँ से आम इंसान
या तो चींटी जैसा दिखता है
या दिखता ही नहीं
इसीलिए ज्यादातर नियम
केवल हवाई यात्रा करने वालों की
सुविधाओं का साधन बन कर रह जाते हैं
और आम इंसान
चींटियों की तरह
थोड़े से आटे के लिए ही
संघर्ष करता
जीता मरता
रह जाता है।

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

ग़ज़ल : हराया है तुफ़ानों को

हराया है तुफ़ानों को मगर ये क्या तमाशा है
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है।

गरजती है बहुत फिर प्यार की बरसात करती है
ये मेरा और बदली का न जाने कैसा नाता है।

है सूरज रौशनी देता सभी ये जानते तो हैं
अगन दिल में बसी कितनी न कोई भाँप पाता है।

वो ताकत प्रेम में पिघला दे पत्थर लोग कहते हैं
पिघल जाता है जब पत्थर जमाना तिलमिलाता है।

कहाँ से नफ़रतें आके घुली हैं उन फ़िजाओं में
जहाँ पत्थर भी ईश्वर है जहाँ गइया भी माता है।

चला जाएगा खुशबू लूटकर हैं जानते सब गुल
न जाने कैसे फिर भँवरा कली को लूट पाता है।

न ही मंदिर न ही मस्जिद न गुरुद्वारे न गिरिजा में
दिलों में झाँकता है जो ख़ुदा को देख पाता है।

पतंगे यूँ तो दुनियाँ में हजारों रोज मरते हैं
शमाँ पर जान जो देता वही सच जान पाता है।

हैं हमने घर बनाए दूर देशों में बता फिर क्यूँ
मेरे दिल के सभी बैंकों में अब भी तेरा खाता है।

बने इंसान अणुओं के जिन्हें यह तक नहीं मालुम
क्यूँ ऐसे मूरखों के सामने तू सर झुकाता है।

है जिसका काला धन सारा जमा स्विस बैंक लॉकर में
वही इस देश में मज़लूम लोगों का विधाता है।

नहीं था तुझमें गर गूदा तो इस पानी में क्यूँ कूदा
मोहोब्बत ऐसा दरिया है जो डूबे पार जाता है।

कहेंगे लोग सब तुझसे के मेरी कब्र के भीतर
मेरी आवाज में कोई तेरे ही गीत गाता है।

दिवारें गिर रही हैं और छत की है बुरी हालत
शहीदों का ये मंदिर है यहाँ अब कौन आता है।

नहीं हूँ प्यार के काबिल तुम्हारे जानता हूँ मैं
मगर मुझसे कोई बेहतर नजर भी तो न आता है।

मैं तेरे प्यार का कंबल हमेशा साथ रखता हूँ
भरोसा क्या है मौसम का बदल इक पल में जाता है।

सोमवार, 29 नवंबर 2010

विज्ञान के विद्यार्थी का प्रेम गीत

एक बहुत पुरानी रचना है आप भी आनंद लीजिए

अवकलन समाकलन
फलन हो या चलन-कलन
हरेक ही समीकरन
के हल में तू ही आ मिली

घुली थी अम्ल क्षार में
विलायकों के जार में
हर इक लवण के सार में
तु ही सदा घुली मिली

घनत्व के महत्व में
गुरुत्व के प्रभुत्व में
हर एक मूल तत्व में
तु ही सदा बसी मिली

थीं ताप में थीं भाप में
थीं व्यास में थीं चाप में
हो तौल या कि माप में
सदा तु ही मुझे मिली

तुझे ही मैंने था पढ़ा
तेरे सहारे ही बढ़ा
हुँ आज भी वहीं खड़ा
जहाँ मुझे थी तू मिली

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

कल रात

कल रात दिल्ली की सड़कों पर
हुआ एक बलात्कार
आज रात भर
उन्हीं सड़कों पर
घूमती रही पुलिस,
दो चार दिन की बात है
फिर सब वैसे का वैसा हो जाएगा
इतिहास एक बार फिर
स्वयं को दोहराएगा

बुधवार, 24 नवंबर 2010

चश्मा

कुछ दिनों पहले उसके पास
दो सौ रूपए का चश्मा था
बार बार उसके हाथों से गिर जाता था
और वो बड़ी शान से सबसे कहता था
मेहनत की कमाई है
खरोंच तक नहीं आएगी।

आज वो चार हजार का चश्मा पहनता है
मगर वो चश्मा जरा सा भी
किसी चीज से छू जाता है
तो वह तुरंत उलट पलट कर
ये देखने लगता है
कि कहीं चश्मे में
कोई खरोंच तो नहीं आ गई।

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

इस मौसम में हरदम मेरा दिल जलता रहता है।

इस मौसम में हरदम मेरा दिल जलता रहता है।

पाँव तुम्हारा चूम चूम कर
धान मुँआँ पकता है
छूकर तेरी कमर
बाजरा लहराता फिरता है
तेरे बालों से मक्का
रेशम चोरी करता है
तेरा अधर चूमने को,
गन्ना रस से भरता है;
सरपत पकड़ दुपट्टा तेरा खींचतान करता है।

बारिश ने जबरन तेरा
यह कोमल गात छुआ है
उस पर मेरा गुस्सा
अब तक ठंढा नहीं हुआ है
तिस पर जाड़ा मेरा
दुश्मन बन आने वाला है
तुझको कंबल से ढक
घर में बिठलाने वाला है;
इतने दिन बिन देखे मर जाऊँगा ये लगता है।

कबसे सोच रहा था अबके
क्वार तुझे मैं ब्याहूँ
तेरे तन के फूलों में निज
मन की महक मिलाऊँ
नन्हीं नन्हीं कलियों से
घर, आँगन, बाग सजाऊँ
पर पत्थर-दिल पागल
आदमखोरों से डर जाऊँ
गए दशहरे कई जाति का रावण ना मरता है।

बुधवार, 17 नवंबर 2010

बस इतना अधिकार मुझे दो

नहीं चाहता साथ तुम्हारे
नाचूँ, गाऊँ, झूमूँ, घूमूँ
नहीं चाहता तुमको देखूँ,
छूँलूँ, कसलूँ या फिर चूमूँ

नहीं चाहता तुम अपना जीवन
दो या फिर प्यार मुझे दो
अंत समय चंदन बन जाऊँ
बस इतना अधिकार मुझे दो

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

भारत माँ का घर जर्जर है सब मिल पुनः बनाएँ

भारत माँ का घर जर्जर है सब मिल पुनः बनाएँ
सेवा के कुछ फूलों में हम मन की महक मिलाएँ

बेघर करके बेचारों को
बीत रही बरसात
दबे पाँव जाड़ा आता है
करने उनपर घात
कम से कम हम एक ईंट इक वस्त्र उन्हें दे आएँ
हुए अधमरे अधनंगे जो उनके प्राण बचाएँ

मंदिर मस्जिद जो भी टूटा
टूटीं भारत माँ ही
चाहे जिसका सर फूटा हो
रोई तो ममता ही
मंदिर एक हाथ से दूजे से मस्जिद बनवाएँ
अब तक लहू बहाया हमने अब मिल स्वेद बहाएँ

शनिवार, 6 नवंबर 2010

पाँच दोहे तेल पर

तन मन जलकर तेल का, आया सबके काम।
दीपक बाती का हुआ, सारे जग में नाम॥

तन जलकर काजल बना, मन जल बना प्रकाश।
ऐसा त्यागी तेल सा, मैं भी होता काश॥

बाती में ही समाकर, जलता जाए तेल।
करे प्रकाशित जगत को, दोनों का यह मेल॥

पीतल, चाँदी, स्वर्ण के दीप करें अभिमान।
तेल और बाती मगर, सबमें एक समान॥

देख तेल के त्याग को, बाती भी जल जाय।
दीपक धोखा देत है, तम को तले छुपाय॥