मंगलवार, 27 जुलाई 2010

धर्म और जाति

धर्म और जाति अब हमे कुछ नहीं दे सकते,
सिवाय धार्मिक दंगों,
आतंकवाद और प्रेमियों की हत्या के,
धर्म ने जो कुछ देना था दे चुका,
जाति ने जो कुछ देना थी दे चुकी,
अब कुछ नहीं बचा इनके पास देने को,
ये अब समय के अनुसार नहीं चल पाते,
अब इनमें परिवर्तन नहीं होता,
ये तेजी से बदलते युग के साथ नहीं बदल पाते,
ये सड़ने लगे हैं अब,
अब इनसे छुटकारा पाने का वक्त आ गया है,
आओ कुछ को जला दिया जाये,
कुछ को दफना दिया जाय,
इनकी चिता पर फूल रखकर,
इन्हें अन्तिम प्रणाम किया जाये,
इनकी कब्र पर माला रखकर अन्तिम विदा दी जाये,
अब हमें ईश्वर से जुड़ने के लिए,
ना धर्म की आवश्यकता है,
ना ही समाज को चलाने के लिए जाति की।

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