सोमवार, 30 मई 2011

कविता : बड़ी अजीब हैं तुम्हारी यादें

बड़ी अजीब हैं तुम्हारी यादें

दिमाग के थोड़े से आयतन में
छुपकर बैठी रहती हैं
तुम्हारी ठोस यादें

बस अकेलेपन की गर्मी मिलने की देर है
बढ़ने लगता है इनके अणुओं का आयाम
और ये द्रव बनकर बाहर निकलने लग जाती हैं

धीरे धीरे
जैसे जैसे
बढ़ती है अकेलेपन की गर्मी
ये गैस का रूप धारण कर लेती हैं
और भर जाती हैं दिमाग के पूरे आयतन में
अपना दबाव धीरे धीरे बढ़ाते हुए

एक दिन ऐसा भी आएगा
जब अकेलेपन की गर्मी इतनी बढ़ जाएगी
कि दिमाग की दीवारें
इन गैसों का दबाव सह नहीं पाएँगी
और ये गैसें
दिमाग की दीवारों को फाड़कर बाहर निकल जाएँगी

उस दिन तुम्हारी यादों को
मुक्ति मिल जाएगी
और मुझे शांति
मगर ये दुनिया कहेगी
कि मैं तुम्हारे प्यार में पागल हो गया।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बस अकेलेपन की गर्मी मिलने की देर है
    बढ़ने लगता है इनके अणुओं का आयाम
    और ये द्रव बनकर बाहर निकलने लग जाती हैं...kamaal ka likha hai

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  2. एक दिन ऐसा भी आएगा
    जब अकेलेपन की गर्मी इतनी बढ़ जाएगी
    कि दिमाग की दीवारें
    इन गैसों का दबाव सह नहीं पाएँगी
    और ये गैसें
    दिमाग की दीवारों को फाड़कर बाहर निकल जाएँगी

    बहुत ही खूबसूरत.....

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  3. shandar rachana .....yu hi likhte rahiye ....shubhakamnaye

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  4. बस अकेलेपन की गर्मी मिलने की देर है
    बढ़ने लगता है इनके अणुओं का आयाम
    और ये द्रव बनकर बाहर निकलने लग जाती हैं

    वैज्ञानिक भाषा में दिल की बात लिख दी है ... अच्छी प्रस्तुति

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  5. मगर ये दुनिया कहेगी
    कि मैं तुम्हारे प्यार में पागल हो गया । bahut khoob...

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