रविवार, 25 दिसंबर 2011

ग़ज़ल : पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध

पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध
दरिया को बाँहों में लेकर बतियाता है बाँध

मत बाँधो उसके गम में तुम बाँध आँसुओं का
बिना सहारे के बनता जो, ढह जाता है बाँध

फाड़ डालती पर्वत की छाती चंचल नदिया
बँध जाती जब दिल माटी का दिखलाता है बाँध

पत्थर सा तन, मिट्टी सा दिल, मन हो पानी सा
तब जनता के हित में कोई बन पाता है बाँध

पर्त पर्त बनते देखा है इसको इसीलिए
सपनों में अक्सर मुझसे मिलने आता है बाँध

यूँ ही ग़ज़ल नहीं बनते कंकड़, पत्थर, मिट्टी,
तेरा मेरा जन्मों का कोई नाता है बाँध

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

क्षणिका : आँच

हमारे तुम्हारे बीच
भले ही अब कुछ भी नहीं बचा
मगर तुम्हारे दिल में जल रही लौ से
मैं आजीवन ऊर्जा प्राप्त करता रहूँगा
क्योंकि आँच अर्थात अवरक्त विकिरण को चलने के लिए
किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती

रविवार, 4 दिसंबर 2011

गली के कुत्ते और वफ़ादार कुत्ते

किसे नहीं अच्छे लगते
वफादार कुत्ते?

जो तलवे चाटते रहें
और हर अनजान आदमी से
कोठी और कोठी मालिक की रक्षा करते रहें

ऐसे कुत्ते जो मालिक का हर कुकर्म देख तो सकें
मगर किसी को कुछ बता न सकें
जो मालिक की ही आज्ञा से
उठें, बैठें, सोएँ, जागें, खाएँ, पिएँ और भौंकें

ऐसे ही कुत्तों को खाने के लिए मिलता है
बिस्किट और माँस
रहने के लिए मिलती हैं
बड़ी बड़ी कोठियाँ
और मिलती है
अच्छे से अच्छे नस्ल की कुतिया

और जब ऐसे किसी कुत्ते पर कोई संकट आता है
तो उसे बचाने के लिए एक हो जाते हैं
सारे वफादार कुत्ते और कोठी मालिक
और मजाल कि ऐसे कुत्तों पर कोई आँच आ जाए
ज्यादा से ज्यादा इनकी कोठियाँ बदल दी जाती हैं बस

कभी कभार कोई कुत्ता जोश में आता है
और जोर से भौंककर भीड़ इकट्ठा करने की कोशिश करता है
तो उसे पागल कहकर गोली मार दी जाती है

शहर को सुरक्षित रखने का जिम्मा
दर’असल गली के कुत्तों के पास है
ये दिन रात गलियों में गश्त लगाते
और भौंकते हुए घूमते रहते हैं
बदले में इन्हें मिलता है
कूड़े में गिरा बदबूदार खाना
और रहने के लिए मिलता है
गली का कोई अँधेरा, सीलनभरा, गंदा कोना

ये कविता नहीं है
श्रद्धांजलि है
उन गली के कुत्तों को
जो शहर की रक्षा करते करते
एक दिन किसी गाड़ी के नीचे आकर
कुत्ते की मौत मर जाते हैं

ऐसे कुत्तों की कोई नस्ल नहीं होती
इनकी कहीं कोई मूर्ति नहीं लगती
और ये अच्छे नस्ल की कुतिया
केवल अखबारों में छपी तस्वीरों में ही देख पाते हैं
मरने के बाद इनकी लाश घसीटकर
कहीं शहर से बाहर डाल दी जाती है
सड़कर खत्म हो जाने के लिए

ओ गली के आवारा कुत्तों!
तुम्हारी वफादारी है अपने शहर के लिए
इसलिए भले ही तुम्हारा जीवन
और तुम्हारी मौत गुमनाम हों
मगर ये गलियाँ, ये शहर
हमेशा तुम्हें याद रखेंगे
तुम हमेशा रहोगे कलाकारों के लिए प्रेरणा के स्रोत
और तुम्हारा जिक्र हमेशा किया जाएगा
कविताओं में

ओ गली के आवारा कुत्तों!
स्वीकार करो
शब्दों के सुमन
भावों की धूप
कविता के स्वर और एक कवि की पूजा
क्योंकि इस शहर के
तुम ही देवता हो
तुम न होते
तो ये शहर कब का
वफादार कुत्तों और कोठी मालिकों का गुलाम हो गया होता