बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

नवगीत : शब्द माफ़िया

शब्द माफिया
करें उगाही
कदम कदम पर

सम्मानों की सब सड़कों पे
इनके टोल बैरियर
नहीं झुकाया जिसने भी सर
उसका खत्म कैरियर

पत्थर हैं ये
सर फूटेगा
इनसे लड़कर

शब्दों की कालाबाजारी से
इनके घर चलते
बचे खुचे शब्दों से चेलों के
चूल्हे हैं जलते

बाकी सब
कुछ करना चाहें
तो फूँके घर

नशा बुरा है सम्मानों का
छोड़ सको तो छोड़ो
बने बनाए रस्तों से
मुँह मोड़ सको तो मोड़ो

वरना पहनो
इनका पट्टा
तुम भी जाकर

11 टिप्‍पणियां:

  1. वर्तमान प्रचलित ब्यवस्था की सटीक व्याख्या के लिये हार्दिक बधाई

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  3. अपने मन-माफिक चलें, तोड़ें नित कानून ।

    जो इनकी माने नहीं, देते उसको भून ।

    देते उसको भून, खून इनका है गन्दा ।

    सत्ता लागे चून, पड़े न धंधा मन्दा ।

    बच के रहिये लोग, मिले न इनसे माफ़ी ।

    महानगर में एक, माफिया होता काफी ।।




    दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक

    http://dineshkidillagi.blogspot.in

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  4. शुक्रवारीय चर्चा मंच पर आपका स्वागत
    कर रही है आपकी रचना ||

    charchamanch.blogspot.com

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  5. बहुत सुन्दर .सार्थक शब्द prayog भावानुरूप .

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  6. .बहुत सुन्दर .सार्थक शब्द .प्रयोग भावानुरूप .

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  7. सच का बेलाग उद्घाटन करती यह कविता,आज के कवि के लिये एक चेतावनी भी है .बधाई !

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जो मन में आ रहा है कह डालिए।