बह्र : २२ २२ २२ २
जीवन में कुछ बन पाते
हम इतने चालाक न थे
सच तो इक सा रहता है
मैं बोलूँ या तू बोले
हारेंगे मज़लूम सदा
ये जीते या वो जीते
पेट भरा था हम सबका
भूख समझ पाते कैसे
देख तुझे जीता हूँ मैं
मर जाता हूँ देख तुझे
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
बढ़िया ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
हटाएंNice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us.. Happy Independence Day 2015, Latest Government Jobs. Top 10 Website
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंक्या बात है सर ... अच्छा प्रयोग ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नास्वा जी
हटाएंVery nice article gives me lots of positive energy & a lesson to be positve. Great Efforts, God bless you…Keep it up!!!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंWah sir iam impressed keep it up
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