मंगलवार, 13 सितंबर 2016

ग़ज़ल : कुछ पलों में नष्ट हो जाती युगों की सूचना

बह्र : 2122 2122 2122 212

कुछ पलों में नष्ट हो जाती युगों की सूचना
चन्द पल में सैकड़ों युग दूर जाती कल्पना

स्वप्न है फिर सत्य है फिर है निरर्थकता यहाँ
और ये जीवन उसी में अर्थ कोई ढूँढ़ना

हुस्न क्या है एक बारिश जो कभी होती नहीं
इश्क़ उस बरसात में तन और मन का भीगना

ग़म ज़ुदाई का है क्या सुलगी हुई सिगरेट है
याद के कड़वे धुँएँ में दिल स्वयं का फूँकना

प्रेम और कर्तव्य की दो खूँटियों के बीच में
जिन्दगी की अलगनी पर शाइरी को साधना

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