सोमवार, 28 नवंबर 2016

ग़ज़ल : उतर जाए अगर झूठी त्वचा तो

बह्र : १२२२ १२२२ १२२

उतर जाए अगर झूठी त्वचा तो।
सभी हैं एक से साबित हुआ, तो।

शरीअत में हुई झूठी कथा, तो।
न मर कर भी दिखा मुझको ख़ुदा, तो।

वो दोहों को ही दुनिया मानता है,
कहा गर जिंदगी ने सोरठा, तो।

समझदारी है उससे दूर जाना,
अगर हो बैल कोई मरखना तो।

जिसे मशरूम का हो मानते तुम,
किसी मज़लूम का हो शोरबा, तो।

न तुम ज़िन्दा न तुममें रूह ‘सज्जन’
किसी दिन गर यही साबित हुआ, तो।

बुधवार, 9 नवंबर 2016

कविता : हम ग्यारह हैं

हमें साथ रहते दस वर्ष बीत गये

दस बड़ी अजीब संख्या है

ये कहती है कि दायीं तरफ बैठा एक
मैं हूँ
तुम शून्य हो

मिलकर भले ही हम एक दूसरे से बहुत अधिक हैं
मगर अकेले तुम अस्तित्वहीन हो

हम ग्यारह वर्ष बाद उत्सव मनाएँगें
क्योंकि अगर कोई जादूगर हमें एक संख्या में बदल दे
तो हम ग्यारह होंगे
दस नहीं