शनिवार, 9 अगस्त 2014

नवगीत : जैसे कोई नन्हा बच्चा छूता है पानी

मेरी नज़रें तुमको छूतीं
जैसे कोई नन्हा बच्चा
छूता है पानी

रंग रूप से मुग्ध हुआ मन
सोच रहा है कितना अद्भुत
रेशम जैसा तन है
जो तुमको छूकर उड़ती हैं
कितना मादक उन प्रकाश की
बूँदों का यौवन है

रूप नदी में छप छप करते
चंचल मन को सूझ रही है
केवल शैतानी

पोथी पढ़कर सुख की दुख की
धीरे धीरे मन का बच्चा
ज्ञानी हो जाएगा
तन का आधे से भी ज्यादा
हिस्सा होता केवल पानी
तभी जान पाएगा

जीवन मरु में तुम्हें हमेशा
साथ रखेगा जब समझेगा
अपनी नादानी

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही लाजवाब नवगीत ... धर्मेन्द्र जी ... सोच को नयी दिशा देता हुआ ...

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