मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

गीत : पैसा, ख़तरा, ख़ून हमारा सारा लाभ तुम्हारा

पैसा, ख़तरा, ख़ून हमारा
सारा लाभ तुम्हारा

तिल तिल कर वो मरा सदा
जो रहा अछूता तुमसे
चारों खम्भे लोकतंत्र के
चरण वन्दना करते

सारी ख़बरों में बजता है
तुम्हरा ही इकतारा

नायक खलनायक अधिनायक
खेल खिलाड़ी सारे
देव, दैव, इंसान, दरिन्दे
सब हैं दास तुम्हारे

मन्दिर मस्जिद गिरिजाघर में
गूँज रहा जयकारा

ऐसा क्या है इस दुनिया में
जिसे न तुमने जीता
साम, दाम, औ’ दंड, भेद से
फल पाया मनचीता

पूँजी तुम्हरे रामबाण से
सारा भारत हारा

11 टिप्‍पणियां:

  1. पैसा, ख़तरा, ख़ून हमारा
    सारा लाभ तुम्हारा
    ...वाह ..बहुत सटीक अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह .. मस्त नवगीत है ... सार्थक टिप्पणी है आज के माहोल पर ...

    जवाब देंहटाएं
  3. पैसा, ख़तरा, ख़ून हमारा
    सारा लाभ तुम्हारा
    सुन्दर सही भावाभिव्यक्ति ,वास्तविकता को बयां कर दिया है आपने ,आज यही सब कुछ हो रहा है

    जवाब देंहटाएं

जो मन में आ रहा है कह डालिए।