
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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सज्जन धर्मेन्द्र जी, good job! keep it up!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंबहुत बढ़िया ऐसे ही आगे बढ़ते रहो.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंबहुत बहुत बधाई धर्मेन्द्र जी ... ऐसे ही लिखते रहें ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंसज्जन धर्मेन्द्र जी, bahut hi accha bro lage rahiye
जवाब देंहटाएंशुक्रिया गौरव जी
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