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गुरुवार, 26 जुलाई 2012

कविता : श्रेष्ठ कवि / लेखक

कविता पढ़ने के लिए उसे आँखों से सुनना पड़ता है और कविता सुनने के लिए उसे कानों से देखना पड़ता है।
                             - आक्टॉवियो पाज़
तो आइए और आँखों से सुनिए
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पेट्रोल में लगी हुई आग मुझ तक नहीं पहुँचेगी
(सरकार / मेरी कंपनी मुझे पेट्रोल की एक तय मात्रा का बाजार मूल्य देती है)

महँगाई की आँधी मुझ तक पहुँचते पहुँचते शीतल झोंका बन जाएगी
(मेरी तनख्वाह बढ़ती महँगाई के साथ बढ़ती है)

मेरे हिस्से की गर्मी से मेरे देश का गरीब मरता है
(मेरा कार्यालय, मेरी गाड़ी, मेरा घर सब वातानुकूलित हैं। जो अंदर का वातावरण ठंढा करने के बदले बाहर का वातावरण और गर्म करते हैं।)

टोल बैरियर वाला मुझसे पैसे नहीं माँगता।
(कुछ दिन और आम आदमी से पैसे की उगाही कर लेगा)

बनिया मेरा घरेलू सामान मुफ़्त में दे जाता है।
(आम आदमी के घरेलू सामान में थोड़ी और मिलावट कर लेगा)

मेरे वो खर्चे जो मैं सबसे छुपाकर करता हूँ, सबसे छुपाकर एक आदमी मुझे देता है। मेरे बारे में इतनी जानकारी आपको सूचना का अधिकार भी नहीं दिला सकता। 

मैं वातानुकूलित कमरे में बैठकर देश की आम जनता के दुख दर्दों पर कविता / कहानी / लेख लिखता हूँ जिन्हें पत्रिकाएँ हाथों हाथ लेती हैं। गरीबों का दुख देखकर अक्सर मेरा दिल करता है कि सारे अमीरों की चर्बी निकालकर गरीबों में बाँट दूँ। दूसरे गाँधी की बातें सुनकर मेरा सर श्रद्धा से झुक जाता है। मैं रोज सुबह ईश्वर से दुआ करता हूँ कि प्रभो इस देश से भ्रष्टाचार मिटा दो।

मैं इस देश के शीर्ष समाजवादी कवियों / लेखकों में गिना जाता हूँ। मैं प्रथम श्रेणी का अधिकारी या उसके समकक्ष कुछ अथवा ऐसे अधिकारी का सगा संबंधी हूँ।

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

कविता : बारिश, किताब और गुलाब


तुम्हारी यादों की किताब बार बार नमकीन बारिश में भीगती है
भीगे हुए दो पन्ने एक हो जाते हैं
भीतर छपे शब्द नमी पाकर फैलते हैं और अपना अस्तित्व खो बैठते हैं

अस्तित्व दर्द का पर्यायवाची है

नमी के बगैर
एक दूसरे से सालों साल सटे हुए पन्ने भी जुड़ नहीं पाते

भीगकर चिपके हुए दो पन्नों को अलग करना सबसे बड़ा गुनाह है

हर फटी पुरानी किताब में एक सूखा गुलाब होता है

खुशकिस्मत होते हैं वो गुलाब जो किताबों की बाहों में सूखते हैं

क्यारियाँ न होतीं तो क्या गुलाब के पौधे न उगते

मंदिर, जयमाल, बगीचे, क्यारियाँ और भी न जाने कहाँ कहाँ सूख रहे हैं गुलाब
मगर गुलाब के बराबर मात्राओं वाला और तुकांत शब्द किताब है
गुलाब और किताब ग़ज़ल का काफ़िया भी बन सकते हैं
फिर भी हर किताब के नसीब में गुलाब नहीं होता

बारिश, किताब और गुलाब मिलकर वह मूलकण बनाते हैं
जो जीवन का निर्माण करने वाले बाकी मूलकणों में द्रव्यमान उत्पन्न करता है

बारिश, किताब और गुलाब के पहले भी जीवन था
पर क्या वाकई वो जीवन था?

रविवार, 8 जुलाई 2012

कविता : तुम्हारी बारिश

विलियम वर्डसवर्थ के अनुसार कविता भावातिरेक में हुआ क्षणिक उद्गार है।
राबर्ट फ़्रास्ट के अनुसार कविता कुछ ऐसी चीज है जिसे कवि लिखते हैं।
जितने लोग उतनी परिभाषाएँ इसलिए अंततः किसी ने हारकर कहा कि कविता और प्रेम को परिभाषित करना असंभव है। पेश है भावातिरेक में हुआ एक उद्गार|
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बारिश धीरे धीरे गुनगुनाती है
वो सारे गीत जो मैं तुम्हारे लिए गाया करता था
झिल्ली और मेढक पार्श्व संगीत देते हैं

भीगी हुई सड़क से लौटती रोशनी तुम्हारी हँसी है

तुमसे प्यार करना
मूसलाधार बारिश में गाड़ी चलाने जैसा क्यों था?
उस भीषण दुर्घटना में मौत से बच जाना अभिशाप था

तुम्हारे बिना रहना हाथ पैरों के बगैर जीना है

भीगी हुई रातरानी तुम्हारे भीगे हुए नाखून के बराबर भी नहीं है

भीगे हुए पहाड़ पर एक एक करके बुझती हुई बत्तियाँ
तुम्हारे गहने हैं जो मैंने उतारे थे एक एक कर

बारिश बंद हो गई है सड़कें सूख रही हैं
काश! एक बार फिर तुम बरसतीं मेरी आत्मा की नमी सूख जाने के पहले

शनिवार, 23 जून 2012

कविता : पूजा


एक भी दिन तुम्हारी पूजा करना भूल जाऊँ
या अगरबत्ती जलाना भूल जाऊँ
या माला फूल चढ़ाना भूल जाऊँ
या आरती करना भूल जाऊँ
या पूजा बीच में छोड़ कर
रोते हुए बच्चे को चुप कराने लग जाऊँ
या...................
जरा सी चूक और तुम नाराज हो जाओगे

तुम्हारी कृपा पाकर मैं गरीबों से घृणा करने लग जाऊँगा
तुम्हारा क्रोध मुझसे मेरी प्रिय वस्तुएँ छीन लेगा

अतः हे देवताओं! मैं नहीं करता तुम्हारी पूजा
कृपया अपनी कृपा और अपना क्रोध
इन दोनों को मुझसे दूर रक्खो

बुधवार, 20 जून 2012

कविता : धूप


सूरज नहीं थकता
धूप थक जाती है

सूरज नहीं सोता
धूप सो जाती है

सूरज के लिए अर्थहीन है
थक कर सोना

धूप जानती है
थक कर सोने का आनंद
सुबह फिर से नई हो जाने का आनंद

सूरज के मिटने के बाद
उसका बचा अंश अँधेरे का गुलाम हो जाएगा

धूप रोज जिएगी रोज मरेगी
पर अनंतकाल तक अँधेरे से लड़ती रहेगी

गुरुवार, 7 जून 2012

कविता : प्रेमियों का शब्दकोश


साँस का अर्थ जुबान है
आँख का अर्थ होंठ है
चेहरे का अर्थ किताब है
होंठों का अर्थ त्वचा है
त्वचा का अर्थ आत्मा है
मैं, तुम निरर्थक शब्द हैं
हम का अर्थ दुनिया है
प्रेम का अर्थ ईश्वर है

कल ही मैंने कबाड़ी से प्रेमियों का शब्दकोश खरीदा है

रविवार, 6 मई 2012

विज्ञान के विद्यार्थी की प्रेम कविता - २


ज्या, कोज्या, स्पर्शज्या.....
कितने सारे वक्र एक एक करके जोड़ने पड़ते हैं

असंख्य समाकलन करने पड़ते हैं
सारे हिस्सों का सही क्षेत्रफल और आयतन निकालने के लिए

हवा के आवागमन के साथ
सारे गतिमान हिस्सों के सभी बिन्दुओं में परिवर्तन की दर
न जाने कितने फलनों के अवकलन से निकल पाती है

लाखों कैलोरी ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है दिमाग को
तब कहीं जाकर ये तुम्हारा सजीव मॉडल बना पाता है
मेरे स्वप्न में

मेरे दिमाग को इस मेहनत का कुछ तो फल दो
थोड़ी देर तो मेरे स्वप्न में रहो