शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

स्वर्ग-नर्क

स्वर्ग-नर्क की बात सोचकर

बाल न अपने नोंच,

दोनों में कुछ अन्तर है

तो वो है अपनी सोंच;

 

स्वर्ग सुखी है बड़ा

वहाँ परियाँ हैं आतीं,

यही सोचकर नर्क

दुखी है मेरे साथी;

 

नर्क में बड़ा कष्ट

वहाँ राक्षस तड़पाते,

यही सोचकर स्वर्ग

में सभी हँसते-गाते;

 

इतनी सी है बात

न दोनों में अन्तर है,

बाकी सब विद्वानों का

जन्तर-मन्तर है।

नहीं चाहता

नहीं चाहता बन पग पैजनिं, मैं उसके चरणों को चूमूँ,

न चाहत बन पदत्राण, यारों मैं उसके संग-संग घूमूँ;

 

ये कभी नहीं चाहा मैंने, बन नथ उसकी सांसों का रस लूँ,

ना ये अभिलाषा है मेरी, बन वस्त्र उसे बाहों में कस लूँ;

 

नहीं चाहता बन कंगन, उसके कोमल हाथों को छूलूँ,

नही अभीप्सित बन बिंदिया, सजकर मस्तक पर खुद को भूलूँ;

 

मेरी अभिलाषा यही प्रिये, जब शून्य-चेतना हो तेरा तन,

वरण तुझे कर चुकी मृत्यु हो, दें तुझको दुत्कार सभी जन;

 

तब मैं बन चन्दन की लकड़ी, तुझको निज बाँहों में भर लूँ;

यदि तुझे जलायें लोग प्रिये, तो मैं भी तेरे साथ जलूँ;

 

बन राख,, लगाकर गले, अस्थियों को तेरी समझूँगा मैं,

मेरा धरती पर आना हुआ सफल, विस्वास करूँगा मैं।

सहयात्री मिल जाते

सहयात्री मिल जाते!

 

इस जीवन यात्रा के क्षण दो-

क्षण तो मधुरिम हो जाते;

सहयात्री मिल जाते!

 

कुछ समीप की कुछ सुदूर-

की हो जातीं कुछ बातें;

सहयात्री मिल जाते!

 

वो कुछ कहते, हम कुछ-

कहते, हँसते और हँसाते;

सहयात्री मिल जाते!

 

क्षण भर के ही पर कुछ-

बन्धन औरों से बँध जाते;

सहयात्री मिल जाते।

 

कुछ पल उड़ते पंख

लगाकर यूँ ही आते-जाते;

सहयात्री मिल जाते।

 

इस लम्बी यात्रा के कुछ-

क्षण स्मृतियों में बस जाते;

सहयात्री मिल जाते।

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

देवी तुम जाओ मन्दिर में

देवी तुम जाओ मन्दिर में।

 

मेरे घर में क्यों आओगी?

मुझ गरीब से क्या पाओगी?

धूप, द्वीप, नैवेद्य, फूल, फल,

स्वर्ण-मुकुट, पावन-गंगाजल,

पीताम्बर औ’ वस्त्र रेशमी,

मेरे पास नहीं ये कुछ भी,

कैसे रह पाओगी सोंचो, तुम मेरे छोटे से घर में?

देवी तुम जाओ मन्दिर में।

 

मेरे श्रद्धा सुमनों में देवि,
है रंग नहीं,
है गंध नहीं,

है गागर प्रेम भरी उर में,

पर बुझा सकेगी प्यास नहीं,

हैं पूजा के स्वर आँखों में,

पर है उनमें आवाज नहीं,

कैसे पढ़ पाओगी भावों को, उठते जो मेरे उर में?

देवी तुम जाओ मन्दिर में।

 

तुमको भाती है उपासना,

लोगों का कातर हो कहना,

"देवी ये मुझको दे देना,

देवी उससे वो ले लेना,

देवी इसको अच्छा करना,

उससे मेरी रक्षा करना,"

कैसे मांगोगी तुम मुझसे, छोटी छोटी चीजें घर में?

देवी तुम जाओ मन्दिर में।

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

साहब बोले (हाइकु कविता)

साहब बोले,
"नींबू मीठा होता है"
मैं बोला, "हाँ जी"।

साहब बोले,
"चीनी फीकी होती है"
मैं बोला, "हाँ जी"।

साहब बोले,
"मिर्ची खट्टी होती है"
मैं बोला, "हाँ जी"।

साहब बोले,
"मैं बनूँगा एम डी?"
मैं बोला, "हाँ जी"।

मैं बोला, "सर
दस दिन की छुट्टी
है मुझे लेनी"।

"जा अब छुट्टी,
बड़ा काम है किया"
साहब बोले।

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

सात हाइकु

आँसू तुम्हारे,

मेरे लिये बहे क्यों,

पराया हूँ मैं।

 

नशा हो गया,     

जो मैंने पिया प्याला,

आँखो से तेरी।

 

छू दे प्यार से,

वो पत्थर को इंसा,

करे पल में।

 

मधुशाला हो,

न हों आँखें तेरी, तो

चढ़ती नहीं।

 

मधु है, या है

ये, अमृत का प्याला,

या लब तेरे।

 

बिजली गिरी,

न थी छत भी जहाँ,

उसी के यहाँ।

 

उँचा पहाड़,

बगल में है देखो,

गहरी खाई।

बुधवार, 16 सितंबर 2009

शायरी

१- कहाँ कहाँ नहीं खोजा तुमने, एक कतरा सच्ची मोहोब्बत का।

   कभी तो गौर से ऐ दोस्त, मेरी आँखों में भी देखा होता ।।

२- आँखो तक आया प्यार, निकल कर बह न सका।

   तुम समझ न पाये यार, और मैं कह न सका।।

३- काँटे टूट गये छूकर हमको, फूलों ने लहूलुहान कर दिया।

   दुश्मन काँपते रहे डर से, दोस्तों ने परेशान कर दिया।।

४- ये राह ए इश्क है, जरा संभलना, यहाँ कदम कदम पर दर्द मिलते हैं।

   सूरत पे मत जाना दोस्तों, अक्सर, इस राह पर लोग बडे बेदर्द मिलते हैं।।

५- चलो मेरा उनको छेड़ना कुछ काम तो आया,

   बदनाम करने को ही सही,

   उनकी जुबाँ पे मेरा नाम तो आया।

 ६- मत छूना अपने होठों से, जल जायेंगे सब गीत मेरे।

   हैं छन्द मेरे प्रेयसि मधुमय, अंगारे हैं ये अधर तेरे।

७- कितनी भी ड़ालियाँ बदल ले, कितना भी मीठा बोल ले

   इस जमाने की सदा यही रीत है रही,

   तुझे सुन के सब चले जायेंगे कोयल, कोई तुझे पालेगा नहीं।

८- कितने भी गहरे भाव लिखें हम, कविता कहलायेंगे।

   तुम छू दो होंठों से शब्दों को, गीत वो बन जायेगें ।।

९- कभी किसी को टूटकर प्यार मत करना, वरना,

   हल्की सी ठोकर से तुमको पड़ जायेगा बिखरना ।

तब याद बहुत तू आती है

तब याद बहुत तू आती है।

 

जब किसी पुरानी पुस्तक में, कुछ खोज रहा होता हूँ मैं,

और यूँ ही तभी अचानक मुझको, उस पुस्तक के पन्नों में,

सूखी पंखुडि़याँ गुलाब के फूलों की रक्खी मिल जाती हैं;

तब याद बहुत तू आती है।

 

सावन के मस्त महीने में, जब हरियाली छा जाती है,

झूले पड़ जाने से जब पेड़ों की डाली लहराती है,

उन झूलों पर बैठी कोई लड़की कजरी जब गाती है,

तब याद बहुत तू आती है।

 

वह नन्हा-मुन्हा कमरा जिसमें हम-तुम बैठा करते थे,

गुडड़े-गुडि़या, राजा-रानी, जब हम-तुम खेला करते थे,

उस कमरे को तुड़वाने की माँ जब भी बात चलाती है,

तब याद बहुत तू आती है।

 

एमए, एमबीए, एमसीए और ये तो एमबीबीएस है,

ये लडकी वैसे अच्छी है, पर अब भी लगती बच्ची है,

ऐसा कहकर मम्मी मेरी, जब-जब भी मुझे चिढ़ाती है,

तब याद बहुत तू आती है।

 

अक्सर गर्मी की छुट्टी में, जब गाँव चला मैं जाता हूँ,

और कटे हुए गेहूँ के खेतों मैं खुद को पाता हूँ,

रस्ते पर जाती जब कोई अल्हड़ लड़की दिख जाती है,

तब याद बहुत तू आती है।

भगवान बन गया मैं देखो

भगवान बन गया मैं देखो।

 

निदोर्षों की चीत्कारों से, हिलतीं मन्दिर की दीवारें,

कितनी अबलाओं की लज्जा, लुटती देखो मेरे द्वारे,

पर मुझको क्या मतलब इससे,

मेरे आँख कान सब पत्थर के,

इन्सान नहीं अब हूँ मैं तो,

भगवान बन गया मैं देखो।

 

हिन्दू हों या मुस्लिम या सिख, डरते हैं मुझसे यार सभी,

मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में झुकते हैं कितनी बार सभी,

हैं काँप रहे सब ही थर-थर,

करते जय-जय मेरी डरकर,

जब चाहूँ खत्म करूँ इनको,

भगवान बन गया मैं देखो।

 

इन्सानों का जीवन-तन-मन, ये इनके भावुक आकर्षण,

इनके रिश्ते, नाते, अस्मत और कहते ये जिसको किस्मत,

ये प्यार मोहोब्बत इनके रे,

सब खेल-खिलौने हैं मेरे,

जैसे चाहूँ तोडूँ इनको,

भगवान बन गया मैं देखो।

 

मेरी मर्जी अकाल ला दूँ, या बाढ़ जमीं पर फैला दूँ,

जब चाहूँ इन धमार्न्धों में, धामिर्क दंगे मैं करवा दूँ,

करवा दूँ मैं कुछ भी इनमें,

मेरी ही जय बोलेंगे ये,

इस कदर डरा रक्खा सबको,

भगवान बन गया मैं देखो।

कैसे आऊंगा मैं तेरी शादी में

कैसे आऊँगा मैं तेरी शादी में?

 

तुझे किसी और की होते, कैसे देख पाऊँगा मैं?

तेरी शादी में;

 

दिल रो रहा होगा मेरा,

तो आँसू आँखों के कैसे रोक पाऊँगा मैं?

तेरी शादी में;

 

तू उन्हें देख शर्मा के मुस्कायेगी,

आग सी मेरे तन-मन में लग जायेगी,

खाक हो जाऊँगा मैं,

तेरी शादी में;

 

वरमाला जो तू पिया को पहनायेगी,

फंदा बन के गला मेरा दबायेगी,

घुट के मर जाऊँगा मैं,

तेरी शादी में;

 

संग पिया के जब तू होगी विदा,

भूल जाऊँगा मैं क्या है अच्छा-बुरा,

ड़रता हूँ कि कत्ल-ए-आम कर जाऊँगा मैं,

तेरी शादी में;

 

कैसे आऊँगा मैं तेरी शादी में?