शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

ग़ज़ल : दूर जाना चाहता तो ले के मेला चल

बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २

तेज़ चलना चाहता है तो अकेला चल
दूर जाना चाहता तो ले के मेला चल

खा के मीठा हर जगह से आ गया है तू
स्वस्थ रहना है तुझे तो खा करेला चल

सूर्य चढ़ने दे जरा, इस काँच के घर में
साँप ख़ुद मर जाएँगें, तू फेंक ढेला, चल

जिन्दगी अनजान राहों से गुजरती है
एक भटकेगा यकीनन हो दुकेला चल

चल रही आकाशगंगा चल रहे तारे
चल रहा जग तू भी अपना ले झमेला चल