शनिवार, 14 मई 2011

ग़ज़ल: मेरी किस्मत में है तेरा प्यार नहीं

मेरी किस्मत में है तेरा प्यार नहीं
तेरी नफ़रत किंतु मुझे स्वीकार नहीं

दिल में बनकर चोट बसी जो तू मेरे
निकली फिर क्यूँ बन आँसू की धार नहीं

तुझसे होकर दूर मरा तो कबका मैं
रूह मगर क्यूँ जाने को तैयार नहीं

तुझको नफ़रत के बदले में नफ़रत दूँ
मान यकीं मैं इतना भी खुद्दार नहीं

जान मिरी हाजिर है तेरी खिदमत में
आता मुझ पर तेरा क्यूँ एतबार नहीं

12 टिप्‍पणियां:

  1. तुझको नफ़रत के बदले में नफ़रत दूँ
    मान यकीं मैं इतना भी खुद्दार नहीं

    जान मिरी हाजिर है तेरी खिदमत में
    आता मुझ पर तेरा क्यूँ एतबार नहीं

    बहुत खूब ...भावों को बखूबी लिखा है

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  2. जान मिरी हाजिर है तेरी खिदमत में
    आता मुझ पर तेरा क्यूँ एतबार नहीं

    बहुत खूबसूरत शेर....

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  3. 22 22 कर के चलने वाली इस बहर की गज़ल में आपने तख्ती का प्रयोग नियम के मुताबिक ही किया है| जब कि कई शायर छूट के हवाले से जायज ठहराते हुए इस बहर में 22 22 की जगह 1212 या 2121 वजन पर लिखते हुए भी देखे गए हैं|

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  4. सुंदर गज़ल भाई धर्मेन्द्र जी बधाई और शुभकामनाएं |

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  5. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 17 - 05 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  6. सुन्दर भावपूर्ण रचना ! बधाई !

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  7. नफरत आखिर स्वीकार क्यूँ होगा
    सुन्दर रचना

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  8. तुझको नफ़रत के बदले में नफ़रत दूँ
    मान यकीं मैं इतना भी खुद्दार नहीं

    बहुत खूब ... नफ़रत के बदले नफ़रत ... ये तो अपनी अदा नही ... लाजवाब ग़ज़ल है धर्मेन्द्र जी ...

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  9. सुषमा जी, संगीता जी, वीना जी, नवीन भाई, जयकृष्ण राय जी, संगीता जी, साधना जी, वर्मा जी, दिगंबर नासवा जी, अजय जी और निवेदिता जी उत्साहवर्द्धन के लिए आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया

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जो मन में आ रहा है कह डालिए।