शनिवार, 21 जनवरी 2012

नवगीत : सूरज रे जलते रहना

जब तक तेरे तन में ईंधन
सूरज रे जलते रहना

मान चुके जो अंत निकट है
उनका अंत निकट है सचमुच
जीवन रेख अमिट धरती की
आए गए हजारों हिम युग
आग अमर लेकर सीने में
लगातार चलते रहना

तेरा हर इक बूँद पसीना
छू धरती अंकुर बनता है
हो जाती है धरा सुहागिन
तेरा खून जहाँ गिरता है
बन सपना बेहतर भविष्य का
कण कण में पलते रहना

छँट जाएगा दुख का कुहरा
ठंढ गरीबी की जाएगी
बदकिस्मत लंबी रैना ये
छोटी होती ही जाएगी
बर्फ़-सियासी धीरे धीरे
किरणों से दलते रहना

6 टिप्‍पणियां:

  1. तेरा हर इक बूँद पसीना
    छू धरती अंकुर बनता है
    हो जाती है धरा सुहागिन
    तेरा खून जहाँ गिरता है
    बन सपना बेहतर भविष्य का
    कण कण में पलते रहना...एक सजग आह्वान

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  2. "बर्फ़-सियासी धीरे धीरे
    किरणों से दलते रहना"
    पूरा नवगीत ही बहुत सुंदर है किंतु ये पंक्त्तियाँ बहुत प्रभावित कर गईं।
    बहुत खूब !

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  3. sushila ने आपकी पोस्ट " नवगीत : सूरज रे जलते रहना " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    "बर्फ़-सियासी धीरे धीरे
    किरणों से दलते रहना"
    पूरा नवगीत ही बहुत सुंदर है किंतु ये पंक्त्तियाँ बहुत प्रभावित कर गईं।
    बहुत खूब !

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  4. बहुत ही सुन्दर नव गीत ... जीवन सूर्य की तरह ही जलते रहना चाहिए ... सुन्दर अनुभूति ..

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  5. छँट जाएगा दुख का कुहरा
    ठंढ गरीबी की जाएगी
    बदकिस्मत लंबी रैना ये
    छोटी होती ही जाएगी
    बर्फ़-सियासी धीरे धीरे
    किरणों से दलते रहना

    बहुत सुंदर नवगीत। नवीन बिम्बों का सफल और सुंदर प्रयोग।

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  6. सुंदर गीत.... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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