शुक्रवार, 9 मार्च 2012

ग़ज़ल : जहाँ जाओ जुनून मिलता है

जहाँ जाओ जुनून मिलता है
घर पहुँचकर सुकून मिलता है

न्याय मजलूम को नहीं मिलता
हर सड़क पर कनून मिलता है

अब तो करती है रुत भी घोटाले
मार्च के बाद जून मिलता है

सब की नस नस में आजकल पानी
और आँखों में खून मिलता है

सूर्य से लड़ रहा हूँ दिन भर तब
रात कुछ पल को मून मिलता है

झोपड़ी से न पूछिए कैसे
तेल, रोटी व नून मिलता है

कहीं आटा भी मिल रहा आधा
कहीं भत्ता भी दून मिलता है

रब को गढ़ते थे हाथ जो उनमें
आज खैनी व चून मिलता है

5 टिप्‍पणियां:

  1. Qabile Tareef

    Dhund rahe the bahut roj se kisi "sajjan" ko, aaj tammana puri hui
    Zuda hai anjaz-e bayan aapka, hasrat mere dil ki aaj gururi hai.

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  2. sachchai bayan kar rahi hai is kavita ke ek ek shabd.....waaaaaaaaaah!!!!!!

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  3. शसक्त व समर्थ गज़लकार भाई धर्मेंन्द्र कुमार सिंह सज्जन को सतशः बधाई

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  4. क्‍या रवानी है.. और शे'र भी बहुत उम्‍दा..
    अब तो करती है रुत भी घोटाले
    मार्च के बाद जून मिलता है

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जो मन में आ रहा है कह डालिए।