रविवार, 22 जनवरी 2017

ग़ज़ल : है अंग अंग तेरा सौ गीत सौ ग़ज़ल

बह्र : मफऊलु फायलातुन मफऊलु फायलुन (221 2122 221 212)

है अंग अंग तेरा सौ गीत सौ ग़ज़ल
पढ़ता हूँ कर अँधेरा सौ गीत सौ ग़ज़ल

देखा है तुझको जबसे मेरे मन के आसपास,
डाले हुए हैं डेरा सौ गीत सौ ग़ज़ल।

अलफ़ाज़ तेरा लब छू अश’आर बन रहे,
कर दे बदन ये मेरा सौ गीत सौ ग़ज़ल।

नागिन समझ के जुल्फें लेकर गया, सो अब,
गाता फिरे सपेरा सौ गीत सौ ग़ज़ल।

आया जो तेरे घर तो सब छोड़छाड़ कर,
लेकर गया लुटेरा सौ गीत सौ ग़ज़ल।

शनिवार, 14 जनवरी 2017

नवगीत : ये दुनिया है भूलभुलैया

ये दुनिया है भूलभुलैया
रची भेड़ियों ने
भेड़ों की खातिर

पढ़े लिखे चालाक भेड़िये
गाइड बने हुए हैं इसके
ओढ़ भेड़ की खाल
जिन भेड़ों की स्मृति अच्छी है
उन सबको बागी घोषित कर
रंग दिया है लाल

फिर भी कोई राह न पाये
इस डर के मारे
छोड़ रखे मुखबिर

भेड़ समझती अपने तन पर
खून पसीने से खेती कर
उगा रही जो ऊन
जब तक राह नहीं मिल जाती
उसे बेचकर अपना चारा
लायेगी दो जून

पर पकते ही फसल भेड़िये
दाम गिरा देते
हैं कितने शातिर

ऊन मांस की ये सप्लाई
ऐसे ही पीढ़ी दर पीढ़ी
सदा रहे कायम
भाँति भाँति का नशा बाँटकर
इसीलिए सारी भेड़ों को
किया हुआ बेदम

सब तो साथ भेड़ियों के हैं
तंत्र और संसद
मस्जिद और मंदिर

मंगलवार, 10 जनवरी 2017

ग़ज़ल : जो करा रहा है पूजा बस उसी का फ़ायदा है

बह्र : ११२१ २१२२ ११२१ २१२२

जो करा रहा है पूजा बस उसी का फ़ायदा है
न यहाँ तेरा भला है न वहाँ तेरा भला है

अभी तक तो आइना सब को दिखा रहा था सच ही
लगा अंडबंड बकने ये स्वयं से जब मिला है

न कोई पहुँच सका है किसी एक राह पर चल
वही सच तलक है पहुँचा जो सभी पे चल सका है

इसी भोर में परीक्षा मेरी ज़िंदगी की होगी
सो सनम ये जिस्म तेरा मैंने रात भर पढ़ा है

यदि ब्लैकहोल को हम न गिनें तो इस जगत में
वो लगा लुटाने फ़ौरन यहाँ जब भी जो भरा है

चलो अब तो हम भी चलकर उसे बेक़ुसूर कह दें
वो भरी सभा में रोकर सभी को दिखा रहा है