गंगा नदी के किनारे खड़े होकर,
एक बुढ़िया ने एक रूपये का सिक्का,
नदी में उछाला,
उसके विश्वासों के अनुसार,
उसने गंगा की गोद में पैसे बोए,
इसका फल उसे आने वाले वक्त में मिलेगा,
एक रूपये के बदले ढेर सारे रूपये मिलेंगे।
वह सिक्का नदी में गिरते पाकर,
एक लड़का उसे निकालने नदी में कूदा,
लड़के के लिए यह रोजमर्रा का काम था,
ऐसे ही उसकी जीविका चलती थी,
सिक्के निकालकर,
पर इस बार उसने डुबकी लगाई,
तो वो बाहर नहीं आया।
बेचारी बुढ़िया,
अब यह समझ ही नहीं पा रही थी,
कि उसने पूण्य किया,
या लड़के की मौत का कारण बनकर,
पाप किया;
वह खुद को कोस रही थी,
कि उसने सिक्का इतनी जोर से क्यों फेंका,
किनारे ही फेंक देती;
अब न जाने भविष्य में उसे,
पूण्य का फल मिलेगा,
या पाप का दण्ड।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
भावुक कर देने वाली रचना...आभार
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